प्रिय कृष्ण भक्तों, आज आप सभी को ये बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि सतत् प्रयास के बाद माँ सरस्वती की कृपा और हम सभी के इष्ट, भगवान् श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से मेंने अपनी अंतरात्मा की आवाज को इस परम पवित्र ग्रंथ के रूप में उन सभी भक्तों को, जो भगवान् श्रीकृष्ण के परम भक्त हैं, अर्पित किया है। मेरे मन में काफी समय से एक विचार था कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम के सम्पूर्ण जीवन की घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से वर्णन करने वाला एक ग्रंथ “श्री राम चरित मानस” सभी राम भक्तों के लिए जीवन का आधार है, मगर श्रीकृष्ण भक्तो के लिए अपने इष्ट लीला पुरुषोत्तम महायोगी भगवान् श्रीकृष्ण के 125 वर्ष के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का विवरण क्रमबद्ध पद्यरूप में किसी ग्रंथ में नहीं है।अलग अलग लीलाओं के अलग अलग वर्णन तो उपलब्ध हैं, अतः इसी भावना से मेरे मन में विचार आया, कि एक ऐसे ग्रंथ की रचना हो जो प्रिय कृष्ण भक्तों के जीवन का आधार बन सके। इसी के प्रयास में मेंने राजकीय सेवा से निवृत्त होने के बाद अपना ध्यान आकर्षित किया। माँ सरस्वती की कृपा व प्रभु श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से आज ये रचना आपको समर्पित कर रहा हूँ। भक्तो मेरा ये करबद्ध निवेदन है कि जिस प्रकार ईश्वर प्रदत्त प्रेरणा व आप सब के प्यार व आशीर्वाद से ये ग्रंथ पूर्ण हुआ है उसी प्रकार इस ग्रंथ का प्रत्येक कृष्ण भक्त तक पहुंचना भी आवश्यक है अतः इस कार्य में आपका सहयोग आवश्यक है। इसके लिए आप अपने, अधिक से अधिक इष्ट मित्रों तक इसका प्रचार प्रसार एवं क्षमता अनुसार धर्मार्थ वितरण कर सहयोग प्रदान करें।भक्तों ,जो भक्ति भाव से इस ग्रंथ को पड़ेगा या सुनेगा उसी को भगवत भक्ति का प्रसाद मिलेगा,भक्ति में अविश्वास एवं तर्क का कोई स्थान नहीं होता है भक्त पूरी तरह भगवान के श्री चरणों में अपने को समर्पित करके आदर के साथ इस ग्रंथ को पड़ेंगे, सुनेंगे या रखेंगे उनके मन में भक्ति भाव का संचार अवश्य होगा। ऐसा मेरा मानना है।
“श्रीकृष्ण चरित मानस” का अध्ययन करने के बाद पाया कि इस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण के संपूर्ण जीवन की मुख्य- मुख्य लीलाओं ( घटनाओं )का वर्णन किया गया है !जिनको देखने के लिए देवता भी लालायित रहते थे। देवेन्द्र सिंह परमार जी द्वारा की गयी इस रचना की विधा चौपाई , दोहा, सोरठा व छंद अति उत्तम हैं ! जिसमें शब्दों व मात्राओं का पूरा ध्यान रखा गया है ! यह ग्रंथ ब्रजभाषा में लिखा गया है यह भाषा स्वयं में ही सरल होती है इसके उपरांत भी भावार्थ देकर व समय-समय पर आवश्यक उदाहरण देकर और भी सरल बना दिया गया है यह रचना काव्य कला की दृष्टि से सर्वोत्तम है, इसमें सभी उपयुक्त साहित्यिक रसों का अनुपम समावेश किया गया है ! इसमें भक्ति,प्रेम,समर्पण के गुण एवं वास्तविक तत्वों को बड़े रोचक ओजस्वी व सरल शब्दों में व्यक्त किया गया है ।इस ग्रंथ में परमार जी द्वारा जो घटना लिखी गई हैं वह प्रमाणित व क्रमबद्ध लिखी गई हैं ! प्रभु की लीलाऐं तो अनंत हैं, मगर द्वापर युग के अवतार रूप में जो लीलाए की हैं उनमें से प्रमाणित व प्रचलित लीलाओं का क्रमबद्ध विवरण दिया गया है । अन्ततः यह ग्रंथ श्री कृष्ण भक्तों एवं संपूर्ण मानव मात्र के लिए शिक्षा, सदाचार, ज्ञान एवं भक्ति भाव का परिचायक है ।सभी भक्तों के लिए यह ग्रंथ घर में रखने, इसकी पूजा करने, प्रिय मित्रों को शुभ अवसरों पर भेंट करने, पढ़ने व सुनने के लिए अत्यंत लाभ कारी सिद्ध होगा । जन कल्याण हेतु परमार जी के इस भक्ति भाव से किए गए प्रयास की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं और उन्हें आशीर्वाद देता हूं । साथ ही आशा करता हूं कि आप अपने भक्ति भाव से परिपूर्ण विलक्षण बुद्धि का लाभ जनमानस तक पहुंचाने के लिए ऐसे जन कल्याण के कार्य को उत्तरोत्तर आगे बढ़ाते रहेंगे ।
भक्तों यह एक पुस्तक नहीं, यह एक ग्रन्थ है। यह आपकी, भगवान श्री कृष्ण के प्रति आस्था एवं विश्वास पर आधारित है जैसे कहा गया है कि “मानो तो देव नहीं तो पत्थर” जहां प्रभु की लीलाओं का गुणगान हो रहा हो वह स्थान पवित्र माना जाता है प्रभु की लीलाओं का गुणगान करने वाले सन्त पूजनीय होते हैं ,इसी प्रकार जिस पुस्तक में प्रभु की लीलाओं का वर्णन हो वह पुस्तक भी पूजनीय अर्थात ग्रंथ बन जाती है। ऐसा ग्रंथ जिसके द्वारा संगीतमय स्वर लहरियों में प्रभु की लीलाओं को पढ़ने और सुनने से व्यक्ति का मन एकाग्र व आनंदित हो जाता है और अभ्यास करते-करते प्रभु चरणों में पूर्णतया समर्पित हो जाता हो, सम्मानीय ही है। इसी आशा और विश्वास के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की गई है इससे पूर्व ऐसे किसी ग्रंथ की रचना नहीं हुई है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण के संपूर्ण जीवन (प्राकट्य से परायण तक) की लीलाओं का विवरण क्रमबद्ध हो। यह पुस्तक चौपाई, दोहा, सोरठा व छंद की विधा में, सरल भाषा में टीका सहित लिखी गई है। इस पुस्तक के साथ अपने इष्ट भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र चित्रण के अनुसार “श्री कृष्ण चालीसा” की रचना की गई है ! भगवान श्री कृष्ण श्री हरि विष्णु जी के अवतार हैं अतः इस पुस्तक में “श्री विष्णु चालीसा” की रचना भी की गई है। इससे भी उत्तम बात यह है कि श्री कृष्ण चरित मानस या “श्री कृष्ण चालीसा” का पाठ करने या कराने के बाद किए जाने वाले हवन के लिए भगवान श्री कृष्ण के 108 नामों की आहुतियो की रचना की गई है। भगवान श्री कृष्ण के 108 नामों का उच्चारण, वाचन या मनन करना लाभदायक है, इसी प्रकार 108 नामों की हवन में अहुतिया देना अत्यन्त लाभदायक है। इस पुस्तक को पांच भागों में बांटा गया है। जिसमें मथुरा गोकुल नंद गांव द्वारिका हस्तिनापुर की सभी घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन किया है भगवान श्री कृष्ण को लीला पुरुषोत्तम कहा गया है अर्थात उनके द्वारा घटित सभी घटनाओं का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता था, इसलिए उनकी प्रत्येक घटना एक लीला के रूप में होती थी, जिस प्रकार गोपियों के वस्त्र हरण की लीला से प्रभु ने उनको यह शिक्षा दी कि नदी में रात के समय भी नग्न होकर नहीं नहाना चाहिए। किसी भी अवतार का मूल उद्देश्य अधर्म को समाप्त कर, धर्म की स्थापना करना होता है। सतयुग एवं त्रेता युग के बाद द्वापर युग की परिस्थितियां भिन्न थी अतः इस युग में धर्म की स्थापना हेतु अलग से रणनीत बनाना आवश्यक था। इन्हीं परिस्थितियों के अनुरूप भगवान श्री कृष्ण ने लीलाएं की। सम्पूर्ण विवरण तो आप पुस्तक को पढ़कर ही समझ सकेंगे। इस पुस्तक के प्रथम भाग में वंदना सृष्टि रचना श्री कृष्ण जन्म, पूतना, सकटासुर, वकासुर आदि राक्षसों का वध, शिव दर्शन लीला, वस्त्र हरण,गोवर्धन, काली दह लीला, नन्द गांव गमन, यमलार्जुन उद्धार एवं महारास लीला आदि का वर्णन है।दूसरे भाग में – कुविलियापीढ हाथी, चाढूर,मुस्टिक मल्लो के साथ कंस वध लीला, उद्धव लीला , कुबिजा मिलन, जरासंध युद्ध, कालियवन को भस्म कराना,आदि लीलाओं का वर्णन है। तृतीय भाग में – रेवती विवाह, रुक्मणी एवं अन्य सात रानियों का विवाह, भोमा सुर को मारकर 16100 कन्याओं की सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने हेतु विवाह करना, माया सुर, सतधन्वा वध, मुरा असुर, पौंड्रक, काशीराज वध, की लीलाएं, द्रोपती स्वयंबर, सुभद्रा विवाह, प्रद्युम्न विवाह, शाम्व विवाह, आदि लीलाओं का वर्णन है। चतुर्थ भाग में – जरा संन्ध, शिशपाल, दन्त वक्र वध,घटोत्कच,अभिमन्यु, द्रोण, भीष्म, कर्ण, दुर्योधन, शकुनी, आदि का वध, गांधारी श्राप, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, द्वारकागमन, आदि लीलाओं का वर्णन है। पंचम भाग में – श्री कृष्ण और शिव जी का युद्ध, अनिरुद्ध विवाह, देवकी पुत्रों की वापसी की कथा, सुदामा श्री कृष्ण मिलन, श्री कृष्ण परायण,भक्त नरसी का जीवन वृतांत, श्रीकृष्ण चालीसा, विष्णु चालीसा एवं आरती आदि का वर्णन किया गया है