• 13/4/232
    मित्रों,
    " कलयुग केवल नाम अधारा" अपने इष्ट की लीलाओं का पाठन व श्रवण करना ही मुक्ति का आधार है। इसके लिए आप पढ़ै व सुनें "श्री कृष्ण चरित मानस" और अखंड पाठ करा कर भी पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    14/4/23
    मित्रों,
    "श्री कृष्न चरित मानस " चौपाई, दोहा, सोरठा व छंद के रूप में ब्रजभाषा में टीका सहित लिखी गई है। इसमें भगवान श्री कृष्ण के संपूर्ण जीवन की लीलाओं का वर्णन है। इस अनुपम कृति को भैंट या उपहार में देकर पुण्य लाभ प्राप्त करें। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    15/4/23
    मित्रों,
    "श्री कृष्ण चरित मानस " को संगीत के स्वरों के साथ गायन करके या सुनकर आप प्रभू के श्री चरणों में आनंद विभोर हो सकते हैं। यह कलयुग के कीर्तन का श्रेष्ठ माध्यम है। इसकी प्रतियां श्री कृष्ण भक्तों में वितरित कर पुण्य लाभ प्राप्त करें। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।

    16/4/23
    मित्रों,
    अगर प्रभु की लीलाऔ को पढ़ते- पढते या सुनते-सुनते इतना अभ्यास हो जाय कि अंतिम समय में भी प्रभु का नाम जवान पर रहे, तो उद्धार हो जाएगा। गूगल पर
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    19/4/23
    मित्रों,
    किसी लालसा या इच्छा पूर्ति के लिए की गई ईश्वर की आराधना तो व्यापार है। आप ईश्वर को क्या दे सकते हो, उस की तो कोई इच्छा ही नहीं होती। वह तो इच्छाओं से तो क्या कल्पना से भी परे है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    20/4/23
    मित्रों,
    प्रभु के श्री चरणों में समर्पित होने के लिए , गद्-गद् कण्ठ से की गई आराधना ही सच्ची आराधना होती है। "आकर तेरे श्री चरणों में, मंजिल मैंने पाई। और न मेरी आशा कोई, मैं जानू प्रभुताई"। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    21/4/23
    मित्रों,
    ज्ञान के बिना भक्ति नहीं होती हे। मगर ज्ञान भी भक्ति के बिना अधूरा है। जब तक ज्ञान के द्वारा हम किसी के विषय में जानेंगे नहीं, तब तक उसमें आसक्ति नहीं हो सकती है। इसके लिए पढ़ें "श्री कृष्ण चरित मानस" खरीदने के लिए, गूगल पर devaradhya.com पर जाय।

    13/4/232
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    15/4/23
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    16/423
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    19/4/23
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    20/4/23
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    21/4/23
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    23/4/23
    मित्रों,
    जब तक आसक्ति नहीं होगी, तब तक पूर्ण समर्पण नहीं होगा। ज्ञान का उद्देश्य भी अंतिम पड़ाव तक पहुंचाना है। जानने के बाद अगर माना नहीं तो ज्ञान प्राप्त करने का क्या लाभ। अर्थात ज्ञान अधूरा है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    24/4/23
    मित्रों,
    ज्ञान, बुद्धि और विवेक एक ही प्रकार के प्रतीत होते हैं, मगर ये एक- दूसरे से भिन्न हैं। ज्ञान वह सामग्री है, जो हमारे जीवन- यापन के लिए, हमारे पूर्वजों ने दी है। बुद्धि के द्वारा उसे जाना जाता है, और विवेक के द्वारा उसे परखा जाता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    25/4/23
    मित्रों,
    संसार में ज्ञान का अथाह भंडार है, जो आता है वही अपना ज्ञान देता है। हमारी बुद्धि उसे पढ़कर या सुन कर जान लेती है, और विवेक ग्रहण करने लायक को ग्रहण करता है। सही गलत का निर्णय करके आत्मसात करता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    26/4/23
    मित्रों,
    भक्ति में तर्क वितर्क या अविश्वास का कोई स्थान नहीं होता है। अपने ज्ञान बुद्धि और विवेक से जान कर हम जहां संतुष्ट हो जाते हैं, वही रम जाते हैं। उसी को हम भक्ति कहते हैं। कोई प्रभु की, कोई संसार की भक्ति में रम रहा है।गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    27/4/23
    मित्रों,
    विवेक ही है, जो मनुष्य योनि को अन्य योनियों से अलग व श्रेष्ठ बनाता है। इसका सदुपयोग करके आप अपने आध्यात्मिक या सांसारिक उद्देश्यो को शीर्ष तक पहुंचा सकते हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    28/4/23
    मित्रों,
    विवेक सत्संग से होता है। "बिन सत्संग विवेक न होई" सतसंग अर्थात सत्य का साथ, जब सत्य का साथ करना है, तो सत्य को जानना भी आवश्यक है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    "जो अखंडनीय है, जिसका न रूप परिवर्तन होता है और ना ही समाप्त होता है, वही सत्य है। आंखों से देखने वाला कानों से सुनने वाला, त्वचा से स्पर्श करने वाला, नाक से सुघने वाला, जिव्हा का स्वाद सभी असत्य हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    पांचों ज्ञानेन्द्रियों से महसूस होने वाला या दिखने वाला संपूर्ण संसार जिसका रूप परिवर्तित होता है। उसका खण्डन अर्थात टुकड़े-टुकड़े किया जा सकता है। अतः सब असत्य है, तो सत्य क्या है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    वह आदि शक्ति जिसका न खण्डन होता है, न रूप परिवर्तन होता है, वही सत्य है। उसी का साथ करने को सत्संग कहते हैं। जब भौतिक रूप से वह हमारे साथ नहीं है, तो उसका साथ कैसे किया जाय। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।

    मित्रों,
    उस परम शक्ति ने विभिन्न रूपों को धारण कर जो उपदेश दिए हैं या लीलाऐ की हैं। उनका श्रवण, पाठन व वाचन करना एवं उनकी शिक्षाओं को आत्मसात कर अपने जीवन में जीना ही सत्संग है। किसके लिए आप पढ़े," श्री कृष्ण चरित मानस" इसे खरीदने के लिए, गूगल पर devaradhya.com पर जाय
    मित्रों,
    वर्तमान में योग्य संतो जिनका स्वयं का आचरण भी परम शक्ति के उपदेशों के अनुसार हैं का साथ करना, उनकी सेवा करना और उनके उपदेशों को सत्संग करना ही सत्संग है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    सत्संग की ही एक कड़ी "श्री कृष्ण चरित मानस "है, इसका पाठन, वाचन व श्रवण करना भी सत्संग है। इसका अखंड पाठ भी किया जाता है। यहआपको "devaradhya .com" साइट पर मिलेगी। आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
    मित्रों,
    सम्पूर्ण श्रृष्टि का स्रजन एवं समाप्ति परम शक्ति की इच्छा से ही होती है प्राणी तो मात्र कठपुतली है। जैसे प्रकृति नचाती है, वैसे कठपुतली नाचती है।" मनचाही होती नहीं, हरि चाही तत्काल "। गूगल पर devaradhya.com पर जाय
    मित्रों,
    हरि चाही तत्काल अर्थात, क्या सभी अच्छे, बुरे काम ईश्वर ही करता है, नहीं। कर्म करने के लिए प्राणी स्वतंत्र है, इसमें प्रभु का कोई हस्तक्षेप नहीं। उसका अस्तित्व तो आपके कर्मों का फल देना वह उसकी व्यवस्था करना है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    भोगों को भोगने में प्राणी कुछ नहीं कर सकता है। यह विधान पूरी तरह ईश्वराधीन है। इसी के लिए कहा है कि "तेरी सत्ता के बिना, हे प्रभु मंगल मूल। पत्ता तक हिलता नहीं, खिले न कोई फूल"। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।

    मित्रों,
    प्रत्येक प्राणी दुखों से छुटकारा चाहता है कुछ खो जाना या हमारी चाहत के अनुसार हमें प्राप्त न होना ही दुख है, जो खो गया या जो प्राप्त नहीं हुआ वह हमारा था ही नहीं। यह धारणा बनाकर दुखों से दूर रहा जा सकता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    "मनचाही होती नहीं, हरि चाही तत्काल" वाक्यांश भी हमारे लोगों के आधार पर कहा है, हम चाहते हैं कि धनवान हो, यशस्वी हो, मगर प्रयत्न करने पर भी ऐसा नहीं होता है।
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    मित्रों,
    "लाभ हानि जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ" यह 6 चीजें प्रभु के हाथ में हैं, अर्थात हमारे भोगों पर आधारित हैं। इनको कम या अधिक करना भी हमारे हाथ में नहीं है। यह हमारे पूर्व जन्म के कर्मो के आधार पर हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    चूंकि हमें पिछले जन्म के कर्मों का ज्ञान नहीं है, हमारी चाहत इस जन्म के कर्मों के अनुसार है, लेकिन इस जन्म के कर्मों का फल तो आने वाले जन्म में मिलेगा तब हमें इन कर्मों की याद नहीं होगी। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    जो हमें इस जन्म में मिल रहा है वही हमारे पूर्व संचित कर्मों का फल अर्थात भोग है। इसे समझना ही संतोष है। हम अधिक पाने की इच्छा से जो करते हैं, वह हमारा अगले जन्म का संग्रह कर्म होता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।

    मित्रों,
    हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार इस जीवन में जो प्राप्त हो रहा है वह न घटेगा न बढ़ेगा, इसलिए जो हमारे पास है उसी में हमको संतोष करना चाहिए।जो प्राप्त है, उसका सदुपयोग करके जीवन को प्रसन्न रखना चाहिए। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    इस जन्म में जो मिलना है वह निश्चित है, इसलिए कहा है कि "राई घटे न तिल बड़े रे मन रहो निशंक" अर्थात जो अच्छा या बुरा निश्चित है,उसे ही अपना मानकर प्रसन्नता पूर्वक रहना ही जीवन जीने की उत्तम कला है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    हमारा जन्म भोगों को भोगने के लिए ही होता है, मगर इन भोगों को भोगने के लिए, जीवात्मा को स्थूल शरीर व अन्य भावनाओं की आवश्यकता होती है। अतः इन्हें सुरक्षित रखना आवश्यक है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    स्थूल शरीर व अन्य भावनाओं को सुरक्षित रखने के लिए हमें कर्म भी करने होते हैं और उन्ही कर्मों का भोग हमारे अगले जीवन के लिए संचित हो जाता है। यह क्रम इसी प्रकार चलता रहता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    कर्म भोग के इस चक्र को तोड़े बिना जीवात्मा की जन्म मरण से मुक्ति संभव नहीं है। मेरी आने वाली पुस्तक "कर्म भोग और मुक्ति" आपकी इस समस्या के निराकरण में अत्यंत सहयोगी होगी। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    स्थूल शरीर एवं मन की भावनाओं को सुरक्षित रखने के लिए व्यक्ति को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा स्वास्थ्य, सुरक्षा की भी आवश्यकता होती है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमें धन की आवश्यकता होती है। धन जुटाने के लिए कर्म करना पड़ता है। उन्ही कर्मो में कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनका भोग बनता है। जो अगले जन्मों का कारण होता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    भोग तो पिछले कर्मों के अनुसार निश्चित हो चुके हैं। उनमें हम प्रयत्न करके भी कम या अधिक नहीं कर सकते हैं, तो उस में ही संतोष करके प्रशन्न रहना जीने की उत्तम काला है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    इस जीवन में परिस्थिति बस हमें जो कर्म करने पड़ते हैं, उनके लिए हम स्वतंत्र होते हैं, अतः हम अपनी बुद्धि और विवेक का सदुपयोग करके बहुत कुछ कर सकते हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    जिस संसार (मृत्युलोक) में जीवात्मा अपने भोगों को भोगने के लिए आई है, वह संसार, माया के जाल से आच्छादित है।उस माया जाल से बिना दाग लगे निकलना आसान नहीं है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    माया जाल से निकलना आसान तो नहीं है मगर असम्भव भी नहीं है। जब हमारे बुद्धि और विवेक का आत्म वल सुद्रण होता है, तो हम कठिन से कठिन परीक्षा को पास कर जाते हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    इस मायाजाल का तोड़ना इस प्रकार है जैसे हमें अपना बैंक खाता खाली करना हो। जब हम अपने खाते में पैसा जमा न करें और निकालते रहे तो एक दिन हमारा खाता शून्य हो जाएगा। गूगल पर devaradhya.com पर जाय। मित्रों,
    इस संसार के मायाजाल में हम सब का भी एक एक खाता है जिसमें हमारे कर्मों के भोगों का लेखा-जोखा रहता है। इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं हो सकती है, क्यों कि इन खातों का संचालन परम शक्ति के द्वारा किया जाता है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    इन खातों में अंतर यह है कि हम अपनी इच्छा से संचित भोगों (धन ) को निकाल नहीं सकते हैं। वह तो प्रत्येक जन्म में प्रभु की इच्छा से भोग कर खर्च हो रहा है। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    अब बात रह जाती है, खाते में जमा करने की, जो पूर्णतया हमारे हाथ में है, हम चाहे तो जमा करें और न चाहे तो जमा न करें, मगर हम पहले बता चुके हैं कि जीना है तो कर्म तो करने ही पड़ेंगे, और कर्म करेंगे तो उनके भोग जमा भी होंगे, तो यह कैसे संभव होगा। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    अब हमें यह सोचना है कि हमने जो नोट कमाए हैं, उनमे असली कौन से हैं और नकली कौन से हैं, क्योंकि असली नोट ही जमा होंगे नकली नोट जमा नहीं होंगे। इसी प्रकार कौन से कर्म जमा होंगे, कौन से कर्म जमा नहीं होंगे।
    गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    जिस प्रकार असली और नकली दो प्रकार के नोट होते हैं, उसी प्रकार हमारे कर्म भी दो प्रकार के होते हैं। सकाम कर्म और निष्काम कर्म। इस प्रकरण को भी मेरी आने वाली पुस्तक "कर्म भोग और मुक्ति" में विस्तार से समझाया गया है। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    सकाम कर्म का भोग बनता है और निष्काम कर्म का भोग नहीं बनता है। अर्थात निष्काम कर्म करके हम अपने खाते की जमा को रोक सकते हैं। खर्च तो निरंतर प्रभु इच्छा से भोगों को भोग कर हो, ही रहा है। इस प्रकार हम अपने खाते को शून्य कर सकते हैं। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।
    मित्रों,
    जब खाता शून्य हो जाएगा तो निश्चित तौर से जीवात्मा की मुक्ति हो जाएगी। जीवात्मा परमात्मा में विलीन होकर परमानंद को प्राप्त होगी। यही हमारी जीवन यात्रा का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। गूगल पर devaradhya.com पर जाय।

  • 16,18/4/23, 19/08/23

    प्रिय,
    ÷कृष्ण भक्तों आज आपको यह बताते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि एक सतत प्रयास के बाद मां सरस्वती की कृपा और मेरे इष्ट भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज को इस परम पवित्र ग्रंथ "श्री कृष्ण चरित मानस" के रूप में,भगवान श्री कृष्ण के परम भक्तों को अर्पित कर रहा हूं। मेरे अंतर्मन में काफी समय से एक विचार था, कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के संपूर्ण जीवन की घटनाएं क्रमबद्ध रूप से "श्रीरामचरितमानस" ग्रन्थ के रूप में, सभी राम भक्तों के लिये, जीवन का आधार है। मगर प्रिय कृष्ण भक्तों के लिए अपने इष्ट लीला पुरुषोत्तम महायोगी भगवान श्री कृष्ण के जीवन की लीलाओं का क्रमबद्ध वर्णन किसी ग्रंथ में नहीं है। अलग-अलग लीलाओं के अलग-अलग वर्णन तो हैं, मगर श्री कृष्ण के 125 वर्ष के संपूर्ण जीवन वृतांत का विवरण पद्यरूप में क्रमबद्ध किसी ग्रंथ में नहीं है। मुझे ऐसी प्रेरणा प्रभु कृपा से हुई। तब मेरे मन में विचार आया कि एक ऐसे ग्रंथ की रचना हो जाए, जो प्रिय कृष्ण भक्तों के जीवन का आधार बन सके।
    मां सरस्वती की कृपा व प्रभु श्री कृष्ण के आशीर्वाद से आज ऐसी ही रचना आप को समर्पित कर सका हूं।
    अधिक जानकारी आप मेरी वेबसाइट devaradhya.com पर जाकर कर सकते हैं।
    देवेंद्र सिंह परमार,
    मोवाइल 94 114 00 931

  • प्रिय कृष्ण भक्तो,
    क्या आप जानना चाहते हैं, कि द्वापर में भगवान श्री कृष्ण का अवतार किस-किस को समाप्त करने के लिए हुआ था। (कंस,जरासंध, दुर्योधन, का अंत तो धर्म स्थापना हेतु हुआ।)। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तो,
    क्या आप जानना चाहते हैं, कि भगवान विष्णु के पार्षद कौन थे, जिन्हें ऋषियों के श्राप द्वारा तीन जन्म तक राक्षस बनना पड़ा था। और वे तीन जन्म में किस-किस नाम के राक्षस बने। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तो,
    क्या आप जानना चाहते हैं, कि भगवान श्री कृष्ण की आठ रानियों के नाम क्या क्या थे। एवं उनका विवाह कैसे हुआ था। राधा, रुकमणी एवं द्रोपदी के क्या स्वरूप थे। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    क्या आप जानना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने 16 000 स्त्रियों के साथ शादी क्यों बनाई थी। क्या आप जानना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के कुल कितने पुत्र और पुत्रियां थी। क्या आप जानना चाहते हैं की बलदेव के कितने पुत्र एवं पुत्रियां थीं। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    क्या आप जानना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की वंशावली क्या थी, ये जादौ (ठाकुर) थे या अहीर (यादव) थे। वासुदेव और नंद बाबा का क्या रिश्ता था। रोहिणी ने बलदेव को जन्म कहां दिया था। नंदगांव कैसे बसा, नंदगांव और वृंदावन की क्या कहानी है। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    क्या आप जानना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के पूर्वज ययाति एवं ब्रह्म ऋषि शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी कौन थी। इनका विवाह कैसे हुआ। आगे संतति कैसे चली। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    क्या आप जानना चाहते हैं कि श्री कृष्ण के पिता वसुदेव के कितने विवाह हुए थे, उनके कितने भाई थे। भगवान श्री कृष्ण की कितनी बूआ थीं, उनके नाम क्या थे। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिया कृष्ण भक्तों,
    क्या आप भगवान श्री कृष्ण के 108 नाम एवं उनकी 8 रानियों के 10 -10 पुत्रों एवं पौत्रौ के नाम, जानना चाहते हैं। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    परशुराम का कर्ण को, अंम्बा का पितामह भीष्म को , गांधारी का श्री कृष्ण को, ऋषियों का श्रीकृष्ण पुत्र शाम को दुर्वासा ऋषि का रुक्मणी को,दिए गये श्रपों के विषय में आप जानना चाहते हैं। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    द्वारका, रुक्मणी एवं बलराम का अंत कैसे हुआ। प्रभु श्री कृष्ण का परायण कैसे हुआ। क्या आप जानना चाहते हैं। तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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    प्रिय कृष्ण भक्तों,
    भक्त नरसी का जन्म, उनकी भक्ति, उनके द्वारा लिखी गई हुंडी, उनके द्वारा दिए गए भात, अंत में उनके द्वारा दी गई परीक्षा, जिसमें उन्हें कलियुग में भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन हुए एवं उनके संपूर्ण जीवन के वृतांत को आप जानना चाहते हैं तो इसके लिए "श्री कृष्ण चरित्र मानस" ग्रंथ को पढ़ें।
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  • भजन

    भजे जा राधे - राधे, जपै जा राधे- राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय, भजे जा राधे राधे।।
    हो साझ सुबह की बेला, जहाँ हो भक्तों का मेला।।
    यहाँ तो भगत करें तकरार। भजे जा राधे - राधे ।।
    भजै जा राधे - राधे, जपै जा राधे - राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय, भजे जा राधे राधे।।
    यहाँ बात ज्ञान की करते, सद्गुण हीऐ में धरते।।
    या ते हो जावै उद्धार। भजे जा राधे - राधे ।।
    भजे जा राधे - राधे, जपै जा राधे- राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय, भजे जा राधे राधे।।
    तजि माया बढ़ि जा आगे, नहि होय मोह बिन त्यागे।।
    तेरी नैया हो जाए पार। भजे जा राधे - राधे ।।
    भजे जा राधे - राधे, जपै जा राधे- राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय, भजे जा राधे राधे।।
    तू ध्यान हरी का धरि ले, जा बैठि साधना करि ले।।
    तेरा होगा ऐका कार। भजे जा राधे - राधे ।।
    भजे जा राधे - राधे, जपै जा राधे - राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय,भजे जा राधे राधे।।
    तब परमानन्द मिलेगा, तेरे मन में कमल खिलेगा।।
    तेरे मिट जाए सभी विकार। भजे जा राधे - राधे ।।
    भजे जा राधे - राधे, जपै जा राधे- राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय, भजे जा राधे राधे।।
    कवि देव करी कविताई, दूजे की टेक लगाई।।
    अब तो कर दो पर ली पार।भजे जा राधे - राधे ।।
    भजे जा राधे - राधे, जपै जा राधे- राधे।।
    तेरो जन्म सफल है जाय, भजे जा राधे राधे।।

  • मल्हार

    दर्शन दे जा, मोकू मेरे सांवरे जी।।2।।
    ऐजी कोई राधा, हम्वै कोई राधा, पुकारे दिन राति।।
    दर्शन दे जा मोकू मेरे सांवरे जी।।2।।
    धीर बंधे ना तेरे बिन हीय में जी।।2।।
    मन से मना मैने तोय पीय जी।।2।।
    ऐजी कोई अब तो,हम्वेकोई अब तो, निभाओ निज रीति।।
    दर्शन दे जा मोकू मेरे सांवरे जी।।2।।
    तन नहि मेरा, मन नहि मानता जी।।2।।
    कैसे निभाउं मैं नहीं जानता जी।।2।।
    ऐजी कोई हमको, हम्वे कोई हमको,सिखाओ गुरु नीति।।
    दर्शन दे जा मोकू मेरे सांवरे जी।।2।।
    नियम कठिन है, तेरी जा राह के जी।।2।।
    छूटे न हम से, वंन्धन माया जाल के जी।।2।।
    ऐजी कोई हम को, हम्वे कोई हमको, मिले ना जीत।।
    दर्शन दे जा मोकू मेरे सांवरे ञणजी।।2।।

  • मेरा तन डोले, मेरा मन डोले, मेरे दिल

    मेरी मानि आज, तजि करके काज।
    अब जाउ द्वारिका धाम रे। दुख हरि लेय बंसी वारौ है।। मित्र तुम्हारे बालापन के, मोहन मुरली वारे।
    घर-घर मांगो भीख तो स्वामी, जाओ उनके द्वारे।।
    मोहि पूरी आश, मिट जाए त्रास।
    अब भजत जाउ हरि नाम रे, दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    मेरी मानि आज, तजि करके काज।
    अब जाउ द्वारिका धाम रे। दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    तीनों पन तो बीति गए अब, चौथो बीतो जाय।
    चौथे पन में मोइ नारि तू,कहे रही पठाय।।
    ये हरि इच्छा, करूं में भिक्षा,
    घर घर द्वारे गाम रे, दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    मेरी मानि आज, तजि करके काज।
    अब जाउ द्वारिका धाम रे। दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    कोदौ समा प्रभु मोकू मिलतो, करती तभी गुजारो।
    अब तो प्रभु जी परि रहो हमको, सहनो दुख करारो।।
    अब तुम जाओ न देर लगाओ,
    समझावे त्यारी वाम रे, दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    मेरी मानि आज, तजि करके काज।
    अब जाउ द्वारिका धाम रे। दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    आज तलक तो तेने मोते, कोई हट ना ठानी।
    इसी बहाने दर्शन कर लू, बात तुम्हारी मानी।।
    देव सुनमें दुख विपिता में,
    नहि चहिऐ धन माल रे, दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।
    मेरी मानि आज, तजि करके काज।
    अब जाउ द्वारिका धाम रे। दुख हरि लेय बंसी वारौ है।।