• विचार मंथन 7-8-2022 महगाई, कर एवं आर्थिक स्थिति

    माननीय मोदी जी,

    जिस वातावरण को सही करने के लिए पेट्रोल एवं डीजल से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए सी एन जी का प्रयोग शुरू हुआ था उसकी कीमत पेट्रोल से भी अधिक हो गई। कितनी चिंतनीय बात है। जिन महिलाओं की आंखों में धुआं न जाए एवं वातावरण शुद्ध हो इसके लिए एल पी जी को अपनाने की गुहार लगाई थी, उसकी कीमत भी रसोई घर पर डाका डाल रही है। इसके अलावा भी बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें आम आदमी की आमदनी के हिसाब से अधिक खर्च हो रहा है, उनका नियंत्रण भी आवश्यक है। जनता को असीमित कष्ट देकर वसूले गए धन से विकास करना भी श्रेष्ठ नहीं है। इससे तो अच्छा है कि विकास की गति को व्यक्ति की आमदनी के अनुरूप ही रखा जाए। तभी व्यक्ति विकास की सुविधाओं का भरपूर आनंद ले सकता है जब उसको कष्ट न हो। अगर आप स्वयं यह मानते हैं कि आमदनी से ज्यादा, खर्च करना परिवार को या देश को गड्ढे में ले जाता है, तो आप स्वयं विचार कर देशहित में उन कार्यों एवं योजनाओं को क्रियान्वित करने का कष्ट करें, जिनसे आम आदमी की आय, महगाई, विकास, कर, देश पर कर्ज आदि का अनुपात सही बना रहे। इस स्थिति को देखकर मुझे कष्ट हो रहा है वैसे आप इतने बुद्धिमान हैं कि अगर आप चाहेंगे तो निश्चित देश इस आपात स्थिति से उभर जाएगा। वैसे आपकी मर्जी। सभी बातें लिखी नहीं जा सकती क्योंकि लिखी बातें सार्वजनिक हो जाती हैं, और पाठक अपने स्वार्थ के लिए ,अर्थ का अनर्थ लगाकर राजनीति करते हैं। किसी अधिकारी के साथ बैठकर मौखिक चर्चा की जा सकती है।आपके अच्छे कामों के बीच कुछ असहनीय भी हो रहा है। जिसका परोक्ष रूप से असर 2024 में दिखाई देगा।कृपया इस तरफ अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो परिणाम चिन्तनीय हो सकते हैं।
    महगाई एवं जी एस टी आम जनता की औसत आय के अनुपात में सीमा पार कर चुकी है। इसके लिए सबसे पहले जीएसटी को आधा करें, उसकी भरपाई के लिए विकास कार्यो की गति को संतुलित करें, छापों में जप्त की गई धनराशि का उपयोग करें। मुफ्त में दी जाने वाली रेवङी योजनाओं को बंद करें । सरकार के खर्चों को कम करें। सड़कों पर जो लोहे के पुल बनाए गए हैं वह वास्तव में निरर्थक हैं, 10 आदमी भी रोड पार नहीं करते हैं,इस प्रकार के निरर्थक कार्यों पर ध्यान देकर उसे नियंत्रित करें। मैं अल्प बुद्धि कुछ नहीं सोच पा रहा हूं आप और आपका स्टाफ बहुत कुछ सोच कर ऐसा निकाल सकते हैं। जो निरर्थक हो। कृपया इधर भी ध्यान दें। वस्तुओं की एम आर पी पर भी ध्यान देकर महंगाई कम की जा सकती है।
    आपके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्वयं सेवक क्या संघ से कुछ लेता है ? नहीं, फिर भी देश सेवा में समय देता है। और कार्य करता है। हां जो आजीवन सदस्य होता है, वह अवश्य अपना खाना पीना, आना-जाना, रहना सहना, संघ से लेता है। क्योंकि वह कोई अपना व्यवसाय नहीं करता है।
    जनता के मन में स्थान बनाने के लिए एवं आर्थिक ढांचा सही करने के लिए एम एल ए, एम पी आदि सभी राजनेताओं के देयको को एवं खर्चों को नियंत्रित करें, यह सभी तो समाज सेवी हैं। न ये कर्मचारी है और न ये अधिकारी है।इनकी पेंशन का तो कोई प्रावधान ही नहीं है, इनके लिए खाना-पीना, आना-जाना, रहना सहना, निः शुल्क किया जा सकता है। वह भी तब जब ये आजीवन देश सेवा का वायदा करें। मगर किसी प्रकार का मासिक भुगतान अशोभनीय है। जो जनता की सेवा करना चाहता है वह बिना खर्च किए चुनाव जीत कर आए और राष्ट् की सेवा करें

    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    941140 0931

  • विचार मंथन -भ्रष्टाचार

    13/08/23 विचार मंथन -भ्रष्टाचार,
    इस समय सरकारों का पूर्ण ध्यान देश के विकास एवं भ्रष्टाचार पर केंद्रित है। ऐसे समय में, मैंने समाचार पत्र में पढ़ा, एक अदालत में प्रतिवादी को मृत्युदंड की सजा दी गयी और ऊपरी अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया। यहां किसी न किसी स्तर पर इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ और वह भी ऐसी संस्था से जिसे हम सर्वोच्च पूजनीय मानते हैं उसके विरोध में तो क्या उसकी समालोचना करने में भी सब डरते हैं। इसी का कारण है कि सरकार भी इधर ध्यान नहीं देती है। मगर यह देश हित में नहीं है सरकार को निडर होकर इधर की अपनी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को बरकरार रखना चाहिए।
    सोचिए यहां एक न्यायालय में तो भ्रष्टाचार हुआ अगर साक्ष्यों को देख कर न्यायालय ने फांसी दी तो उच्च न्यायालय ने उन साक्ष्यों को देख कर अनदेखा क्यों किया? और अगर न्यायालय ने साक्षयों को अनदेखा किया जैसा कि न्यायालय ने कहा है तो न्यायालय ने ऐसा क्यों किया? अगर उच्च न्यायालय की बात सही है तो उसने न्यायालय के न्यायाधीश को दंड क्यों नहीं दिया? पुलिस के सिपाही की गोली से कोई मरता है तो उसे सजा दी जाती है एक न्यायाधीश फांसी लगाकर मारता है उसे कोई दंड नहीं दिया जाता ऐसा क्यों?
    इस भ्रष्टाचार की, मैं दुखी आत्मा से भर्त्सना करता हूं। और सरकार से नम्र निवेदन करता हूं कि अपनी व सरकार की छवि को बनाए रखने के लिए इस प्रकरण की उच्च संस्था द्वारा जांच करा कर देश के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करने की कृपा करें।
    अगर प्रतिवादी अपनी किसी मजबूरी बस उच्च न्यायालय नहीं जा पाता तो उसका जीवन तो समाप्त होता ही उसके परिवार का जीवन भी जिंदा रहते हुए मरे के समान होता। जनता में न्यायालय की छवि खराब होती। ऐसे दुस्साहसी न्यायाधीश चाहे वह न्यायालय के हो या उच्च न्यायालय के, को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    ए•126 एम• आई• जी•
    शास्त्रीपुर, आगरा, यू•पी•
    94 114 00 931

  • 07/10/2023 विचार मंथन – जातिगत – जनगणना

    इस समय सरकार को व सभी दलों को केवल यही काम है, कि कौन किसके साथ है। चुनाव में जीत कैसे हासिल करें। बाकी विषयों पर कोई चर्चा नहीं है, अगर है भी तो मु्द्देबाजी की चर्चा हो रही है। कि किस मुद्दे से हमारा स्वार्थ सिद्ध होगा। यही हाल साल दर साल कहीं न कहीं चुनाव होने के कारण, चलता रहेगा। देश के विकास की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा पाएगा। इसलिए अब समय आ गया है कि सभी चुनाव 5 साल बाद एक साथ हो।
    आज के समय में भारतीय जनता पार्टी को जातिगत जनगणना के मुद्दे की काट के मुद्दे की आवश्यकता है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को आर्थिक आधार पर सभी जातियों के गरीबों को जो एक निश्चित आय से कम आय वाले हैं जो आर्थिक रूप से दलित व कमजोर हैं को ₹50% आरक्षण दिया जाएगा, जो मध्यम आय वर्ग के हैं उन्हें 25% आरक्षण दिया जाएगा, मगर योग्यता से समझौता नहीं किया जाएगा। यह मुद्दा उठाकर प्रत्येक जाति के गरीबों को समझाया जाय, और कानून बनाया जाय। एक गरीबी रेखा के नीचे का आयवर्ग, एक मध्यम आयवर्ग, एक उच्च आयवर्ग। हर जाति के गरीबों को समझाया जाय, कि आपके हिस्से को आपके वर्ग के धनी लोग खा रहे हैं। आपको आपका हक नहीं मिल रहा है। जब आर्थिक आधार पर निर्णय होगा तो आपका ही नाम पहले आएगा। आज आपके हिस्से का लाभ, आपके उच्च आयवर्ग वाले लोग ले जा रहे हैं। वह नहीं ले पाएंगे, वह लाभ आपको ही मिलेगा। अतः आय वर्ग के हिसाब से जनगणना हो और जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी, भी सुनिश्चित होगी। अतः सभी जाति के गरीबों को अपने हक के लिए जात-पात भूल कर आगे आना चाहिए।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    941140 0931

  • 24/09/2023 विचार मंथन – अति बुरी होती है।

    अति का भला ने बोलना, अति की भली न चूप।
    अति का भला ने बरसना, अति की बाली में धूप।।
    हर जगह अति नुकसान दायक होती है किसी भी स्थिति का सीमा पार करना, नुकसान दायक होता है। ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। आये दिन समाचार पत्रों से ऐसी सूचना मिलती है, तो दुख होता है।
    1 :- अभिव्यक्ति की आजादी, मद्रास हाई कोर्ट ने भी एक फैसले में दिनांक 17/9/23 के दैनिक जागरण में कहा है कि बोलने की आजादी के हम विरोध में नहीं है। मगर इसके नाम पर ऐसी बात न कहीं जाए, जिससे किसी की भावना आहत हो। किसी भी व्यक्ति पर बिना प्रमाण के झूठे आरोप लगाना, अमुक आदमी चोर है, नेता देश को बेच रहे हैं, लोकतंत्र खतरे में है, देश को बेचा जा रहा है, लूटा जा रहा है, किसी को गाली देकर बदनाम किया जा रहा है। क्या हमारे कानून ने या समाज ने इन सब बातों की आजादी दी है ? नहीं, तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है।
    2 :- हर बालिग जोड़े को साथ रहने की स्वतंत्रता, लिव इन रिलेशन में रहना, समलैंगिक विवाह, इन सब की हमारे न्यायालय ने भी अनुमति दी है। मेरे विचार से ये अत्यंत दुखद है। बच्चे अपने भविष्य के विषय में इतना अच्छा कभी नहीं सोच सकते, जितना कि उनके माता-पिता व उम्र दराज हितैषी सोच सकते हैं। क्योंकि उनका अनुभव बच्चों से अधिक होता है। बच्चे केवल बाह्य एवं तत्कालिक स्थितियों को लेकर निर्णय करते हैं, मगर मां-बाप अपने अनुभव के आधार पर आंतरिक एवं दूररगामी सोच के अनुसार निर्णय करते हैं। यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है, कि बच्चे बुजुर्गों से अच्छा सोच सकते हैं। इन सब का दुष्परिणाम है कि समाज से भाईचारा समाप्त हो रहा है। हमारी आने वाली पीढ़ी का चरित्र पतन हो रहा है। खाद्य – अखाद्य खाने से स्वास्थ्य खराब हो रहा है। संबंधों के सम्मान का मान मर्दन हो रहा है। पहले पुत्र पिता से डरता था, पिता से बात करने में मां का सहारा लेता था। और अब पिता पुत्र से डरता है। सरकार कहती है कि घमंडिया गठबंधन सनातन को समाप्त कर रहा है, सरकार भी मीडिया एवं चलचित्रों के अनुचित प्रदर्शन पर रोक न लगाकर सनातन धर्म को कमजोर करने का काम कर रही है। ये सनातन धर्म एवं समाज के चरित्र का पतन नहीं तो और क्या है ? इस और भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
    3 :- प्रचार करना, अपने को लोगों को जनवाना अति आवश्यक है, लेकिन यही प्रचार क्रिया जब सीमा से बाहर हो जाती है, तो लोगों को उंगली उठाने का मौका मिलता है। एवं हानिकारक भी होने लगता है। हम देख रहे हैं, कि यही स्थिति हमारी भारतीय जनता पार्टी की होने जा रही है। इस विषय पर अधिक नहीं लिखूंगा। क्योंकि इस पार्टी में इतने प्रबुद्ध लोग हैं कि इतने से ही पूरी भावना को समझ लेंगे। और होने वाली हानि से बचने के कदम उठाएंगे।
    4 :- पाकिस्तान की ज्यादतियां भी सीमा को पार कर रही हैं। जब तक पाकिस्तान या पीओके में आतंकी प्रशिक्षण केंद्र चलते रहेंगे, तब तक पाकिस्तान से आतंक का खात्मा संभव प्रतीत नहीं होता है। इसी प्रकार आये दिन आतंकी घुसपैठ होती रहेगी। और कश्मीर में पूर्ण शांति की स्थापना भी तब तक नहीं होगी। और तब तक कश्मीर को राज्य का दर्जा भी देना उचित नहीं होगा, अन्यथा फिर स्वार्थी नेताओं द्वारा जनता को गुमराह करके, फिर पुरानी स्थिति बहाल करने के प्रयास शुरू हो जाएंगे। अब ठोस एवं कठोर कदम उठाने का समय आ गया है। पाकिस्तान के सामने मरता क्या न करता, की स्थिति आ गई है। और इससे हमारे देश की सेना का एवं आर्थिक स्थिति का भारी नुकसान हो रहा है। इसलिए अब क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है, यह सब आप मुझसे अधिक उत्तम विचार कर सकते हैं। मैं अल्पज्ञ हूँ। आप और आपका दल सर्वज्ञ है।
    4 :- कर प्रणाली यह भी सीमा के पार जा रही है। कर अधिक होने का सबसे बड़ा नुकसान है, लोगों के विचारों में चोरी करने की भावना को जागृत करना। जो बेईमान नहीं है उसे भी अधिक कर सीमा बेईमान होने के लिए मजबूर करती है। उसके बाद उसे रोकने के लिए उठाए गए कठोर कदमों की कार्यवाहियों से सरकार व जनता की दूरियां बढ़ती हैं, जिससे सरकार का वोट बैंक घटना है। और यह प्रजातंत्र शासन में सबसे बड़ी हानि होती है। हमारे प्रबुद्ध नीति नियंताओं को इधर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
    6 :- नेताओं, बड़े अधिकारियों पर होने वाले खर्च भी सीमा से बाहर हो रहे हैं। जब आम जनता और राजनेता व अधिकारियों के रहन-सहन एवं आमदनी में एक सीमा से अधिक अंतर होता है, तो जनता में असंतोष होना स्वाभाविक है। उदाहरण स्वरूप पाकिस्तान की जनता के आक्रोश को देखा जा सकता है। अतः इस और भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
    7 :- महंगाई, यह भी सीमा के आसपास ही है, मगर यह इतना विचारणीय नहीं है, क्योंकि विकास होगा, तो महंगाई तो बढ़ेगी। और विकास देश के लिए आवश्यक है।
    8 :- भ्रष्टाचार, इस समय यह सीमा पार तो नहीं, मगर अछूता भी नहीं है। इस समय भी पुलिस, न्यायालय, शिक्षा क्षेत्र, नियुक्ति क्षेत्र, में आज भी परिलक्षित हो रहा है। शिक्षा, न्यायालय एवं पुलिस काफी अग्रसर हैं। ये सीमा पार न कर जांय यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है।
    9 :- मीडिया को दी गई स्वतंत्रता, यह भी सीमा पार करती जा रही है। पुराने पत्रकार एवं चैनल फिर भी सही भाषा का प्रयोग करते हैं। मगर कुछ एंकर तो, बात का बतंगढ बनाने में सारी सीमा को पार कर जाते हैं। जैसे सरकार में कोई मंत्री बना, तो मीडिया को मंत्री बनाये जाने की सूचना जनता को देने का अधिकार है, मगर यह कहना कि सरकार ने अगडे, पिछड़े, ब्राह्मण या ठाकुर समाज को साधने के लिए मंत्री बनाया है। दूसरे दो लोगों के बीच झगड़ा हुआ तो यह बताओ कि दो लोगों में झगड़ा हुआ है। समुदायों के बीच की बात को देश हित में छुपा लो। इसमें सरकार कुछ नहीं कर रही है। एक पक्ष का पक्ष ले रही है। इस प्रकार के अपने-अपने विचार जोड़ दिये, यह गलत है।जनता तक आपने सूचना पहुंचा दी, अब जनता क्या सोचती है ? क्या समझती है ? इसे उसी के ऊपर छोड़ दो। इसी को नमक मिर्च लगाना कहते हैं। एक मीडिया ट्रायल करना, कानून क्या निर्णय लेगा यह अलग बात है, मीडिया पहले से अपने अनुमानों को लगाने लगता है, यह भी उचित नहीं है। हां सरकार की नीतियों के विषय में जनता को बताना आपका धर्म है। कुछ एंकर तो इतनी जोर से चिल्ला – चिल्लाकर बात करते हैं, कि इसके बाद क्या हुआ। ब्रेक के बाद। कुछ ही एंकर ऐसे हैं, जिनके कारण मीडिया प्रणाली पर कभी – कभी उंगली उठती है। अधिकांश तो बड़ी सही भाषा में अपनी बात जनता के समक्ष रखते हैं। नाम लेना में उचित नहीं समझता। इस विषय में हमारा प्रिंट मीडिया फिर भी पूरी तरह सालीनता का परिचय देता है। दूसरी बात मीडिया पर आने वाले असत्य, अश्लील व अभद्र प्रचार भी, हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।
    10 :- सिनेमा जगत को दी गई स्वतंत्रता, सिनेमा जगत के 80% प्रदर्शन सनातन समाज व युवाओं के चरित्र का पतन करते हैं। इसके द्वारा पहुंचाई जाने वाली हानि मीडिया से कई गुना अधिक है। हमारे इतिहास को बदलकर बदनाम करने का कार्य, हमारे नागरिकों का माइंड वाश करके सनातन से व अपनी संस्कृति से दूर करने का कार्य सिनेमा जगत करता है। इसकी झूठी इतिहासकारिता व नग्न प्रदर्शनों पर अति शीघ्र एवं कठोर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। फिल्म सेंसर बोर्ड को कठिन कानून के दायरे में लाने की एवं अवहेलना करने पर सजा के प्रावधान की भी आवश्यकता है। इधर भी ध्यान देना अति आवश्यक है।
    आपका
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 0 0931

  • 1/9/23 विचार मंथन – एक देश एक चुनाव

    माननीय,
    एक देश एक चुनाव के विषय में जो मुख्य समस्या आएगी वह है, समय से पूर्व अगर कोई विधानसभा या लोकसभा या कोई अन्य निकाय किसी भी कारण बस भंग होता है तो क्या होगा, इसके लिए दूसरे स्थान पर सीट लाने वाले दल या गठबंधन को शेष समय के लिए सरकार बनाने का मौका दिया जाए। मगर चुनाव निश्चित समय पर ही हो।
    इसके लिए मेरी नीचे की पोस्ट पढ़ सकते हैं।
    आए दिन होने वाले पंचायत, विकास खण्ड, नगर निकाय, प्रदेश व देश के समस्त चुनावों में राजनेताओं व पार्टियों का अधिकांश समय व पैसा खर्च होता है। अगर यह पैसा व समय देश के विकास एवं उन्नति पर खर्च हो तो देश की उन्नति व विकास उच्च श्रेणी का होगा।
    प्रधान मन्त्री जी शायद “एक राष्ट्र एक चुनाव” के प्रस्ताव का समर्थन कुछ दलौ ने किया है उनको साथ लेकर इस प्रस्ताव को पास कराने का सुनहरे अवसर का लाभ उठाते हुये प्रस्ताव को पारित करा कर जनता के समक्ष एक अनूठे कार्य का उदाहरण पेश करें !
    इसके लिये मेरे कुछ सुझाव हैं।
    1-सरकार बनाने के लिये आधे से अधिक सीटौ के नियम की जगह जो सबसे अधिक सीटें लाये उसकी ही सरकार बनाने का नियम बनाया जाय !
    2–अगर गठबन्धन होता है तो वह चुनाव से पूर्व हो एवं गठबन्धन न होकर बिलय होना चाहिऎ ताकि उस साझे में स्थायत्व हो !
    3–किसी कारण से सरकार गिरती है तो उससे दूसरे स्थान बाली पार्टी को सरकार बनाने का अधिकार होना चाहिये !
    4-बहु दल प्रणाली को सीमित किया जाए।
    5-राष्ट्रपति शासन का भी विकल्प है।
    मगर चुनाव नियमित समय पर ही होना चाहिये !
    इसके अलावा कुछ लोगों का कहना है कि यह प्रस्ताव संघीय ढांचे के लिये खतरा है ! तो उन्हे बताइये कि संघीय ढांचे के किसी भी अधिकार को कम नही किया जा रहा है !
    कुछ का कहना है कि, यह संविधान के खिलाफ है, तो मेरे भाई समय, परिस्थिति व आवश्यकता के अनुसार संविधान में संशोधन का अधिकार पहले से ही है !
    प्रस्ताव को पारित कराने के निम्न लाभ हैं। 1-राजकीय व पार्टी के धन की बचत !
    2-राजनेताऔ को देश हित मे कार्य करने के लिये अधिक समय का मिलना !
    3-बचाये गये चुनाव के धन व समय से देश हित की योजनाऔ को पूरा करना आदि बहुत सारे प्रत्यक्ष लाभ है !
    आज की स्थित में हर साल में तीन या चार चुनाव कहीं न कहीं ,किसी न किसी पद के लिए हो रहे हैं। प्रत्येक चुनाव में दो से तीन माह का समय लगता है। इस प्रकार साल के 6-9माह का समय इसी में निकल जाता है।इस समय में बढ़े बढ़े राजनेता व अधिकारी चुनाव में व्यस्त हो जाते हैं। वाकी समय में कितना काम कर पायेगे।
    अत: मेरा मत भी एक राष्ट्र एक चुनाव के पक्ष में है !जो भाई इस पोस्ट को पढ़े उनसे मेरा अनुरोध है कि इस पर अपना विचार पक्ष या विपक्ष मे प्रगट कर पोस्ट को शेयर अवश्य करै !
    महोदय देश हित के कार्यो में राजनीति न करें सहयोग करने का कष्ट करें।
    इसी प्रकार हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहे हैं और होते रहेंगे। चुनाव चाहे देश का हो या प्रदेश का चुनाव प्रचार के लिए वही गिने चुने लोग हैं और वही काम करने वाले लोग हैं। एक समय में एक ही काम कर सकते हैं चाहे चुनाव का करालो या देश का, इसीलिए यही उचित लगता है कि एक देश एक चुनाव ही होना चाहिए। इसलिए सभी राजनैतिक दल, सीटों के संख्या बल एवं वोट की राजनीति से ऊपर उठकर,जिनके मन में थोड़ी सी भी देशहित की भावना है, तो देश के सभी चुनाव एक साथ प्रत्येक पाँच साल में कराने की कानून बनाने का कार्य आज से ही शुरू करने की कृपा करें। इस विषय पर मैं 2018 से अपनी फेसबुक पर बराबर लिख रहा हूं । 25/5/18, 3/6/19, 18/6/19, 1/7/19, 19/7/19, 6/8/19, 26/8/19, 12/10/19, 7/5/21, 13/10/21
    आपका एक अदना सा कार्यकर्ता
    देवेन्द्र सिंह परमार
    मो न. 9411400931

  • 20 /09/2021, 25/09/21 विचार मंथन- सबका साथ सबका विकास।

    माननीय मोदी जी,
    आम आदमी के लिए आपका नारा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, अति उत्तम है। सोचने की बात यह है, कि विकास किसका और कैसे,यह बिंदु अति गंभीर, अनुकरणीय व विचारणीय हैं। विकास किसका इसमें
    1- राष्ट्रीय स्तर पर नागरिक का। (क्योंकि नागरिक से ही राष्ट्र बनता है)
    2- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र का।
    राष्ट्रीय स्तर पर नागरिक का विकास, इसमें प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि व समृद्धि के साधनों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, न्याय एवं रोजगार समान रूप से सस्ते सुलभ व समय से प्राप्त हो। (क्योंकि शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, न्याय अथवा रोजगार देर से मिलना, न मिलने के बराबर है)। हमें इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
    2- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र का विकास, देश की सुरक्षा आर्थिक स्थिति पड़ोसियों से संबंध और देश में राष्ट्र भक्तों की संख्या राष्ट्र विकास के मापक बिंदु होने चाहिए।
    दोनों स्थितियों में, मैं समझता हूं कि बिंदु 1- में, 20 और बिंदु 2 – में 80 % लक्ष्य हम प्राप्त कर चुके हैं। देश का सही मैं विकास करने के लिए, इस पद पर, बने रहने के लिए, हमें विकास के बिंदु 1- के कार्यों को 80 % पर ले जाने की आवश्यकता है, देश का नागरिक ही हमें वह शक्ति प्रदान करता है, अतः हमें सर्वप्रथम उसके हितों की रक्षा पर ध्यान देना है। विकास के लक्ष्यों को निर्धारित करने में यह ध्यान में रखना अति आवश्यक है कि जनता कर और महंगाई को किस स्तर तक सहन कर सकती है। अर्थात आम आदमी की आमदनी के अनुसार खर्चे का लक्ष्य निर्धारित किया जाए। अर्थात आम आदमी के अनुसार खर्च का बजट बनाया जाए, जो नहीं हो रहा है। बड़ी-बड़ी योजनाऔ में जो पैसा खर्च होता है वह आवश्यक आवश्यकताओं में पैसे की कमी कर देता है। जनता पर इस समय उसकी आमदनी के अनुसार कई गुना अधिक बोझ पड़ रहा है। उसकी कमर टूटी जा रही है। कर के अतिरिक्त विधायक निधि व सांसद निधी, राज नेताऔ व उच्च अधिकारियों के अनुचित खर्चों में कटोती एवं बेईमानों की जप्त की गई लाखों करोड़ो की संपत्ति से भी आवश्यक आवश्यकताओं की व्यवस्था की जा सकती है। (पैसे को किस प्रकार और किस क्रम में खर्च किया जाए इस पर आगे लिखूंगा।) राजा को सूर्य की तरह होना चाहिए, जब सूर्य जल को नदी तालाबों से खींचता है, तो पता भी नहीं चलता है। जब वर्षा करता है, तो सभी को दिखाई देती है।अर्थात जनता पर कर और महंगाई का इतना ही बोझ हो जिसे जनता आसानी से उठा सके। ध्यान रखना इसे नहीं रोका गया तो एक दिन आप राष्ट्र का विकास करने के योग्य नहीं रहेंगे। और अब तक जो विकास आपने किया है, देश के सम्मान को जिस ऊँचाई तक पहुंचाया है, सब धराशाई हो जाएगा। अतः आम जनता के लिए शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा व आमदनी को सुरक्षित करने के बाद ही बड़े लक्ष की योजना बनाएं। अच्छी सड़कों, गाड़ियों पर चलना तभी अच्छा लगता है जब आम नागरिक का पेट भरा हो, साथ ही वह शिक्षित व सुरक्षित हो। थोड़ा लिखा बहुत समझना।

                सरकार सबका साथ, सबका विकास के नाम पर आई थी। सबका साथ शब्द में किसी समूह का कोई स्थान नहीं है फिर जातीय जनगणना, जातिगत आरक्षण, जातिगत व्यवस्था क्यों? इस प्रकार किसी एक वर्ग को सुविधा देने से दूसरे वर्ग के साथ अन्याय होता है। जाति के आधार पर दी गई सुविधाओं में, क्या सवर्णों में कमजोर लोग नहीं हैं, क्या उनके सपनों पर कुठाराघात नहीं हो रहा है, क्या इन लोगों ने वोट नहीं दिया, क्या यह लोग देश भक्त नहीं हैं, क्या देश की आजादी इनके बिना संभव थी, क्या आजादी में इनका सहयोग नहीं था? जातिगत निर्णय संत संस्कृत के भी अनुकूल नहीं है। इन विचारों से आपकी चारित्रिक, आत्मिक, राजनीतिक छवि की भी क्षति निश्चित है। देश में रोज जातीय आंदोलन हो रहे हैं। जिन से काफी नुकसान हो रहा है। जनता भी परेशान हैं। कारण आरक्षण, और आगे यह आंदोलन इतने बढ़ेंगे कि संभल नहीं पाएंगे। अभी तो जाट मराठा गुर्जर पटेल जैसी कुछ जातियों के ही आंदोलन हैं। आगे चलकर, जाने कितने जातीय आंदोलनों का सामना करना पड़ेगा। सारे आंदोलनों की जड़ में जातिवाद, क्षेत्रवाद के साथ ही वोट वाद भी है। वोट के लिए कुछ नेता लोग जिनके साथ खड़े हो जाते हैं, वही आंदोलन शुरू हो जाता है। सामान सहायता, अनुदान, किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति व्यवस्था, राजकीय सेवा में चयन, सभी कार्य, न्याय संगत भावनाओं सहित, समान रूप में सबके लिए निश्चित किये जांय। नागरिकों की बात, बिना आंदोलन के भी मानी जाय। न मानने योग्य बात, आंदोलन से भी न मानी जाय। ध्यान रखना चाहिए कि जनता के मन में यह बैठ जाय कि आंदोलन करने से, तोड़फोड़ करने से कोई लाभ नहीं होगा। जो मिलना है वह निश्चित ही मिलेगा। इसके लिए एक निश्चित नियमावली बनाई जाय।

                    ऐसे में अगर वर्गीकरण का आधार आर्थिक होता है तो सभी को समान रूप से लाभ होगा क्योंकि अमीर और गरीब सभी वर्गों में हैं। और किसी के साथ अन्याय भी नहीं होगा क्योंकि आर्थिक संपन्न व्यक्ति को सहायता की आवश्यकता नहीं होती है। इससे उनके साथ भी अन्याय नहीं होगा। अतः व्यापार में, परीक्षा में, सामाजिक कार्य में, आर्थिक आधार पर सुविधा दी जाय, आरक्षण नहीं। तो लंबे समय में पार्टी को अधिक लाभ हो सकता है। इस बात को सभी वर्ग के गरीब लोगों को समझना होगा। वैसे आप राजनीति में मुझे अधिक समझदार हैं, जो करेंगे उचित करेंगे। मेरे द्वारा पूर्व में दिए गए सुझावों पर आंशिक रूप से विचार कर नीतियां बनाई हैं, उनका में सहर्ष स्वागत करता हूं।

                अब तक की सरकारें इस मूल मंत्र पर नहीं चल रही थीं, यह सरकार भी इस मूलमंत्र पर नहीं चल रही है। मगर दुःख तो इस बात का है कि अन्य सरकारों ने तो यह वादा नहीं किया था कि सबका साथ सबका विकास। इस सरकार ने तो चिल्ला चिल्ला कर सबके साथ, सब के विकास का वादा किया था। इस सरकार ने तो जीत ही इस आधार पर पाई थी। यह अत्यंत दुखद है। इसके बाद भी हम इसके साथ हैं। मगर ध्यान रहे कि निजी स्वार्थ बस अधिकांश लोग इस विचारधारा के नहीं हैं। थोड़ा बहुत समझना।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 6/9/18 विचार मंथन – नालों में वह गया करोड़ो लीटर अमृत

    नालों में वह गया करोड़ो लीटर अमृत, बर्षात अब जा रही है, फिर से लोग इस समस्या को भूल जायेगे, मगर साथियो यह भूलने वाली बात नही है ! इसे सरकार को बार बार और हमेशा याद दिलाने की जरूरत है। इसे बुद्धि जीवी लोगों को अपना कर्तव्य समझ कर आन्दोलन का रूप देना है ! इसी क्रम मे मैं शुरूआत कर पोस्ट को पुन:पोस्ट कर रहा हूँ !
    “नालों मे वह गया करोडो लीटर अमृत ”
    यह शीर्षक हिन्दुस्तान अखवार मे पढ़ा तो “भूमि एवं जल संरक्षण विभाग “से जुड़े होने के कारण लिखने का मन हुआ !
    बर्षाती पानी के, नालों व नदियों में वह कर समुद्र में चले जाने से काफी हानि होती है !
    1–प्रकृति द्वारा दिये गये अनमोल रत्न को बर्बाद कर, भूगर्भ जल के लिये तरसना ! जो आने वाली पीढी के लिये अत्यन्त दु:खदाई होगा !
    2–वर्षाती पानी से आने बाली बाढ़ से होने बाली जन – धन की हानि !
    3–इस पानी के साथ उपजाऊ मिट्टी का ह्रास। इस मिट्टी के, बढ़े – बढ़े विद्युत जलाशयों की तह में जमने से, जलाशयों की जल धारण क्षमता का कम होना !
    वास्तव में इस पानी के वहने से होने बाली जन धन की हानि इतनी अधिक होती है कि उससे इस जल का प्रवन्धन करने पर आने बाला खर्च कम ही होगा !
    कुछ सुझाव निम्न प्रकार है !
    1/अ– प्रत्येक शहर में नव निर्मित आवाशीय परिसर के पूरे क्षेत्र की नीचे की सतह पर रीचार्ज तालाव बनाना कानूनन आवश्यक हो !
    पूर्व निर्मित भवनो के आस पास उपलव्ध पार्क सड़क या अन्य स्थानो का प्रयोग कर सरकार द्वारा रीचार्ज तालाबों का निर्माण कराया जाय, ताकि जनता में लड़ाई झगडे न हो ! ध्यान रहे शीवर का पानी किसी भी रीचार्ज तालाव में नहीं जाना चाहिये ! इस पानी की अलग से शीवर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट द्वारा व्यबस्था हो !
    1/ब–प्रत्येक गाँव मे उपलव्ध प्रत्येक तालाव या अन्य खाली जगह पर भी सरकार द्वारा रीचार्ज तालाव बनवाये जाय। साथ ही साथ खेतो की मेडबन्दी के लिये किसानों को जागरूक किया जाय !
    2–प्रत्येक नदी के प्रत्येक 5 से 10 किलो मीटर पर 2 मीटर ऊँचाई के, नदी की चौडाई से, दश – दश मीटर अधिक लम्बाई के पक्के (नदी के बहाव के हिसाब से) मजबूत बाँध बनाये जाय ! इसी के साथ नदियों पर बने हुये या बनने बाले प्रत्येक पुल पर दौ मीटर पानी रुकने का प्रवन्ध किया जाय।
    धीरे धीरे प्रत्येक वर्ष होने वाली धन हानि से इस कार्य की शुरूआत की जा सकती है ! आने वाले दश पाँच साल में हम कम से कम 50% पानी को सुरक्षित कर सकें तो यह बहुत बढ़ी उपलब्धि होगी !
    धन्यवाद।
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 28/09/2023 विचार मंथन – मंदिर बांके बिहारी सेवायत परम पूज्य पंडा जी, मंदिर बांके बिहारी वृंदावन

    महोदय,
    आपने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में कहा है कि ” मंदिर प्रबंधन कॉरिडोर के लिए ना तो धन देंगे और नहीं मंदिर के कामकाज में सरकार का हस्तक्षेप स्वीकार करेंगे” नम्र निवेदन के साथ में कहना चाहता हूं, कि भक्त जो चढ़ावा चढ़ाते हैं, वह आपको अर्पण करते हैं या प्रभु बांके बिहारी को अर्पण करते हैं। जो पैसा आप अपने भक्तों से अलग बिठाकर पूजा पाठ कथा करके प्राप्त करते हैं वह तो आपका होता ही है। मगर शेष चढ़ावे की राशि पर आपका कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह धन भक्तों द्वारा अपने भगवान प्रभु बांके बिहारी जी को अर्पण किया है, उस धन का उपयोग प्रभु की सेवा के लिए एवं प्रभु के भक्तों की सुविधा के लिए ही खर्च किया जाना चाहिए। इस शेष धन पर न सरकार का अधिकार है, और न आपका। अतः इस धन को प्रभु के भक्तों की परेशानी दूर करने के लिए बनने बाले कॉरिडोर के कार्य में व्यय होने दीजिए। वैसे तो यह कार्य प्रभु के भक्तों की सुविधा के लिए बहुत पहले आपको ही करना चाहिए था। मगर आपने नहीं किया, तो सरकार के करने पर उसमें बाधा न डालिए। सेवायत का अर्थ ही प्रभु की सेवा करना है। और प्रभु के भक्तों की सेवा भी प्रभु सेवा ही है। जिससे प्रभु प्रसन्न होते हैं। इस धन पर आप अपना अधिकार बात कर अपनी भक्ति का व अपनी प्रतिष्ठा का स्वयं ही अनादर कर रहे हैं। भक्तों के हृदय में ईश्वर के बाद आपका ही सम्मान है। कृपा कर उसे बनाए रखें, ऐसे कार्य न करें जिससे कि प्रभु कृपा एवं आपके सम्मान की हानि हो। वैसे आप स्वार्थी नहीं हैं। बड़े समझदार हैं। अपनी प्रतिभा का ध्यान आप स्वयं ही रखेंगे।
    एक कृष्ण भक्त
    देवेंद्र सिंह परमार
    94 114 00 931

  • 25/09/2023 विचार मंथन – विधेयकों पर मत विभाजन।

    महोदय,
    हमारे देश की कानून व्यवस्था पर टिप्पणी करना तो उचित नहीं है मगर परिस्थितियों के अनुसार विचार तो किया ही जा सकता है। इसी क्रम में जब कोई विधेयक या प्रस्ताव सदन में आता है तो उस पर चर्चा होने के बाद, अगर मत विभाजन की स्थिति आती है, तो उस समय होना यह चाहिए कि प्रस्तावित प्रस्ताव या विधेयक की क्या अच्छाइयां हैं क्या बुराइयां हैं, यह कितना देश व जनता के हित में है या अहित में है। इस पर विचार कर अपना मत देना चाहिए। मगर यहां क्या होता है कि दलगत मतदाता के ऊपर दल हावी हो जाता है। इसलिए यहां मत यह सोच कर दिया जाता है कि हमारे दल का लाभ या हानि किसमें है। एक दल में ही किसी विशेष विषय पर कुछ सदस्यों की राय भिन्न हो सकती है, मगर वह सदस्य दल के मुखिया के अनुसार ही मत देता है। किसी दल का विह्प जारी करना वैसे तो उपस्थित रहने का आदेश होता है, मगर उसका गूढ अर्थ मुखिया का समर्थन करना होता है। यह सब कुछ असहज सा लगता है। हमारी संसद के कुछ नियमों में त्रुटियां परिलक्षित होती हैं, इनमें सुधार की आवश्यकता है। जैसे सदनों में होने वाले हंगामा, दूसरे पर होने वाले कटाक्ष, सबूतहीन आरोप, सभापतियों का अपमान ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिनमें देश के कानून बनाने वाले सदन के सदस्यों का असहाय होना अशोभनीय लगता है। इसमें भी सुधार की आवश्यकता है। धन्यवाद।
    आपका
    देवेंद्र सिंह परमार
    94 1140 0931

  • 20/09/2023 विचार मंथन – भेदभाव,

    महोदय,
    आर एस एस के सम्माननीय, श्री मोहन भागवत जी द्वारा कहा गया है, कि जब तक समाज में भेदभाव रहेगा, तब तक आरक्षण जारी रहेगा। यह उचित है।( वैसे देखा जाय तो आरक्षण देश हित में नहीं है, क्योंकि आरक्षण व्यक्ति की समानता के अधिकार का हनन करता है। दूसरे योग्यता का अपमान करता है। किसी पद के लिए जो योग्यता होनी चाहिए, उससे निम्न स्तर की योग्यता रखने वाला व्यक्ति अगर चयनित हो जाता है, तो उस पद के कार्य को उचित रूप से संपन्न नहीं कर सकता। जिससे देश का ही नुकसान होता है। इस प्रकार किसी प्रकार का आरक्षण देश के हित में नहीं है।) मगर अब समाज में भेदभाव आर्थिक आधार पर है, न कि जाति के आधार पर। इसे समझना अति आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप किसी भी जाति का एक निर्धन व्यक्ति जब किसी के सामने जाता है तो उसे उसकी जाति न पूछ कर हेय दृष्टि से देखा जाता है। जैसे जब कोई गरीब फटे पुराने बस्त्र पहन कर किसी होटल में, कार्यालय में या किसी समाज में जाता है, तो उसे, उस व्यक्ति की तुलना में, जो अच्छे कपड़े पहनकर आया है, हेय दृष्टि से देखा जाता है। वहां किसी को दोनों की जाती पता नहीं होती है। अर्थात आर्थिक स्थिति के कारण ही भेदभाव होता है। इसके अलावा एक छोटी जाति का धनाढ्य व्यक्ति किसी समाज में जाता है, तो उसका सम्मान होता है। कोई व्यक्ति उसे हेय दृष्टि से नहीं देखा है। जब कोई छोटी जाति का गरीब व्यक्ति किसी समाज में जाता है, तो उसे सभी व्यक्ति हेय दृष्टि से देखते हैं। यहां भी भेदभाव का कारण जाति न होकर आर्थिक आधार ही है। इसी प्रकार बड़ी जातियों के व्यक्तियों के साथ भी होता है इसी प्रकार आप रोज रिक्शे में जाते हैं, तो उसकी गरीबी के अनुसार ही, आप उसका सम्मान करते हैं, जाति के हिसाब से नहीं। सभी जातियों में असहाय एवं निर्बल व्यक्ति होते हैं। हमारा उद्देश्य असहाय की सहायता करना होता है, चाहे वह असहाय व्यक्ति किसी भी कास्ट का हो। सबल व ताकतवर व्यक्ति का संरक्षण करना हमारा धर्म नहीं है।
    अतः मेरा निवेदन है कि आरक्षण या अन्य सहायता प्रदान करने वाली योजनाओं का आधार जाति न होकर आर्थिक स्थित होनी चाहिए। और जब तक आर्थिक आधार का भेदभाव समाप्त न हो जाय, तब तक आर्थिक आधार का आरक्षण समाप्त नहीं होना चाहिए।                                                                                 धन्यवाद
    आपका
    देवेंद्र सिंह परमार
    9411400931

  • 6 /9 /23 विचार मंथन – लव जिहाद।

    मैंने एक घटना पड़ी कि एक मुस्लिम लड़के ने अपनी हिंदू पहचान बनाकर फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से, एक हिंदू लड़की को फंसा कर डेट पर होटल में बुलाया, नशीला पदार्थ खिलाकर इज्जत लूटी, गलत फोटो बनाकर ब्लैकमेल किया। वह पकड़ा गया और जेल में है। क्या यह कार्यवाही अपने में पूर्ण है ? नहीं, अगर इस अपराध को मिटाना है, तो इस अपराध के सभी दोषियों को सजा देना आवश्यक है। लड़के ने तो धोखा देकर जो अपराध किया था, उसकी सजा मिल गई। लेकिन इस अपराध के मुख्य दोषी वह लड़की और उसके माता-पिता को कोई सजा नहीं हुई।
    हमारी भारतीय संस्कृति में डेट शब्द का कहीं उल्लेख है ? नहीं, हमारी सभ्यता में इस प्रकार जाना क्या उचित है ? नहीं, लड़की का अपने अनुभवी माता-पिता से अधिक, अनजान पर या स्वयं पर विश्वास करना उचित है ? नहीं, यह सब क्यों हुआ ? पश्चिमी सभ्यता की नकल को सरकार व अभिभावकों द्वारा बढ़ावा देने के कारण हुआ। पश्चिमी सभ्यता की नकल के कारण आपने आने-जाने एवं बोलने की स्वतंत्रता तो दे दी, मगर उसे स्वतंत्रता का सही रूप में प्रयोग करने की शिक्षा नहीं दी। अपात्र व्यक्ति को दिया गया दान, सहायता, शिक्षा या स्वतंत्रता आत्मघाती होती है। बच्चों को स्वतंत्रता देना अच्छी बात है, मगर अभिभावकों द्वारा उसकी निगरानी करना, तब तक आवश्यक है, जब तक कि बच्चा पूर्ण परिपक्व न हो जाय। बच्चे को मोबाइल दिया है, तो यह जानना कि बच्चा मोबाइल का प्रयोग कैसे कर रहा है, कहीं जा रहा है, तो क्यों जा रहा है। उसकी संगत कैसे लोगों की है, यह सब जानकारी छुपे रूप से समय रहते रखनी चाहिए। ताकि गिरने से पूर्व बचाया जा सके, गिरने के बाद तो इलाज ही कराना है।
    अतः मेरा सुझाव है कि ऐसे अपराधों में अभिभावकों व बच्चों को भी अपनी गलती का एहसास कराने व सुधार करने की दृष्टि से किसी न किसी प्रकार की सजा का भी प्राविधान होना चाहिए। जिस प्रकार घूस लेने और देने वाले दोनों दोषी होते हैं। उसी प्रकार धोखा देने वाला और खाने वाला भी दोषी होना चाहिए। जबरदस्ती से किया गया कृत्य इस प्रकरण में शामिल नहीं है।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    941140931

  • 2022 विचार मंथन – देश पर कर्ज का भार

    इस समय जो समाचार प्राप्त हो रहे हैं। इनकी जांच करे। अगर ये सही हैं तो चिन्ता का विषय है।
    1-देश को हर तरह से मजबूत बनाने का प्रयास जोरौ पर है। उसके बाद भी अगर देश पर कर्ज का भार बढ़ रहा है तो देश आर्थिक रूप से कमजोर हो रहा है। जो चिन्ता का विषय है।
    2-जी एस टी में करदाता बढ़ने से आय में बृद्धि हुई हैं, नोट बन्दी से भ्रष्टाचार कम होने से आय बढी़ है, करोडौ़ रुपये की प्राप्ति गैर कानूनी सम्पत्ति जप्त करने से हुई है। अगर फिर भी देश का वित्तीय घाटा(आमदनी कम सरकारी खर्च ज्यादा) बढ़ रहा है। तो चिन्ता का बिषय है। किसी भी स्थिति में वित्तीय घाटे का बढ़ना गलत है। इसके लिए सरकारी खर्च कम करना अति आवश्यक है।
    3-अगर देश की उत्पादन क्षमता, निर्यात, ब्यक्ति की क्रय शक्ति, प्रति ब्यक्ति आय घट रही है, तो यह चिन्ता का बिषय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है।
    4-जिन सरकारी नौकरियौ की परीक्षा हो चुकी हैं उनमें, परीक्षाफल रुकने, कोर्ट का स्टे आने, परीक्षा में अनियमित्ता होने, आदि कारणौ से तैनाती न हो पाना चिन्ता का बिषय है। यह तैनातियां शीघ्र हों अन्यथा बहुत गलत संदेश जाएगा।
    5-धारा 370 के जिन कारणो से घाटी का विकास रुका था, उन्हीं कारणौ को विकास का आधार बना कर घाटी में विकास कार्य किये जांय। ताकि लोगों को ये समझाया जा सके कि ये विकास धारा 370 के कारण रुका था। यह मात्र संकेत है आशय आप समझिये।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 17/09/2020 विचार मंथन – प्रजातंत्र में शासन

    शासन चलाने के लिए दो श्रृंखला होती हैं।
    1 – चयनित श्रृंखला :- जिसमें कर्मचारी, अधिकारी आते हैं। उनके चयन के लिए पदानुसार, शैक्षिक योग्यता निश्चित होती है। उनकी चयन परीक्षा होती है। उत्तीर्ण होने पर उनका चयन होता है। उनकी एक वैधानिक कर्मचारी आचार संहिता होती है। उसके नियमों की सीमाओं के अंतर्गत नियुक्ति के बाद वे राजकीय सेवा का कार्य 60 वर्ष की उम्र तक करते हैं। इसके फलस्वरूप उनको बेतन, भत्ते पदोन्नति, स्थानांतरण व सेवानिवृत्ती व पेंशन, प्राप्त होती है
    2 – चुनावी श्रृंखला:- यह श्रृंखला कर्मचारी व अधिकारियों के कार्यों की निगरानी के लिए, जनता द्वारा चुनकर भेजी जाती है। जिन्हें जन सेवक या जनप्रतिनिधी कहा जाता है। स्वेच्छा से जो व्यक्ति अपना समय व श्रम, बिना किसी लाभ के जनता की सेवा के लिए देता है, वही जनसेवक होता है। क्योंकि जन प्रतिनिधि न कर्मचारी होता है, न अधिकारी होता है, इसलिए वह कर्मचारी आचार संहिता के अंतर्गत नहीं आता है। इसलिए उन्हें वेतन, भत्ते व पेंशन के नाम से किसी प्रकार का धन लाभ देना उचित नहीं है। अगर कुछ देना ही है तो उन्हें मानदेय या सेवा प्रोत्साहन दिया जा सकता है। जिसमें उनके सामान्य खाने पीने, आने – जाने, रहने, आदि की व्यवस्था की जा सकती है। मगर इस व्यबस्था को सही या गलत ठहरना, समाप्त करना या बढ़ावा देना, उन्हीं लोगों के हाथ में है, जिनके हित प्रभावित होते हैं। जो कानून बनाने वाले हैं। उनके ऊपर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। इसमें न्यायालय ही कुछ निर्णय ले सकता है, वह भी अपने हितों के कारण इसे अनदेखा करता है। इसे तो कोई आने वाला संत प्रवृत्ति का व्यक्ति ही पूरा कर सकता है।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

    विचार मंथन – आय/विकास दर

    माननीय मोदी जी

    5 ट्रिलियन डॉलर लक्ष्य को प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाकर पूरा किया जाए। जीएसटी का स्लैब बढ़ाकर नहीं, व्यक्ति की आमदनी बढ़ाकर, इस लक्ष्य को पूर्ण करना सबके लिए सुखदाई होगा। प्रति व्यक्ति आय के अनुपात से ही आयकर, जीएसटी, विकास दर, का निर्धारण किया जाय। विकास के लिए सर्वप्रथम शिक्षा, द्वितीय स्वास्थ्य, तृतीय रोजगार, चतुर्थ सुरक्षा, एवं पंचम आरामदायक आवश्यकताओं की पूर्ति के क्रम में विकास किया जाय। सभी प्रकार के करों से प्राप्त आय, छापेमारी से प्राप्त धनराशि, राजकीय खर्चों में की गई कटौती से प्राप्त धनराशि एवं ऋण से प्राप्त धनराशि से ही संपूर्ण राजकीय खर्च व्याज सहित एवं विकास कार्य को, उपरोक्त पांचों क्रम से पूर्ण किया जाए, तो अति उत्तम होगा। मेरा यह संकेत समझदार व्यक्ति के लिए गागर में सागर की तरह है। विस्तृत खाका सरकार द्वारा मेरे इस मूल विचार को ध्यान में रखते हुए बनाया जाय। मेरा यही निवेदन है।
    धन्यवाद।
    देवेन्द्र सिंह परमार
    ए126एम आई जी शास्त्रीपुरम आगरा
    9411400931

  • विचार मंथन – वंगाल की हार 06/05/2023

    इस समय वंगाल की हार का दुःख तो है, मगर मित्रो इस हार में भी बढ़ी जीत है। अपने विधायकौ की संख्या बढ़ने से अब राज्य सभा में आपका बहुमत हो गया है। अब मौका है कि जनता के हित के कानूनौ को आसानी से बनाया जा सकता है।
    देश की स्वतंत्रता के 75 साल की वर्ष गाँठ के अवसर पर देश को, संविधान के पुनर्गठन, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ, सुरक्षा, रोजगार एवं समानता को, नागरिक अधिकारों में जोड़ते हुए, एक देश एक चुनाव, एक देश एक कानून, एक देश एक कर, का समावेश हो, साथ ही बोलने की आजादी, राष्ट्र द्रोह, संसद एवं विधान सभाओं में होने वाली अनियमितताओं आदि के मुद्दों का उचित समाधान हो, का विल पास करा कर एक अनूठा उपहार दिया जा सकता है।सरकार के पास देश में अनेको योग्य, अनुभवी, समर्पित कार्यकर्ता हैं, सभी से सुझाव लेकर यह कार्य पूरा किया जा सकता है।
    विचार मंथन शीर्षक से मेंने तो लिखना शुरू कर दिया है।
    आपका एक कार्यकर्ता
    देवेन्द्र सिंह परमार
    मो न. 9411400931

  • 10/4/23 विचार मंथन – एक्टऑफ गॉड”

    भारत में एक ऐसा कानून बनना चाहिए, जिससे प्राकृतिक आपदा से मची तबाही की भरपाई के लिए धर्म स्थलों में जमा संपत्ति का प्रयोग किया जाए। क्योंकि इस सम्पति पर भगवान का ही हक है। और प्राकृतिक आपदा भी भगवान की ही देन है, तो फिर क्यों नहीं ये कानून बनना चाहिए। भारत वर्ष में कहीं पर भी प्राकृतिक आपदा आये तो सरकार सभी मंदिरों, मस्जिदों व चर्च घरों व सभी धार्मिक स्थलों की जमा पूंजी को राहत के तौर पर प्रयोग कर सके। यदि सरकार ये एक्ट ऑफ गॉड बनाती है तो इससे हमारे भगवान, मुस्लिमों के अल्लाह व ईसाईयों के प्रभु यीशु खुश होंगे।
    इसी प्रकार अप्राकृतिक रूप से होने वाले हादसों में प्राण गंवाने वालों के परिवार वालों, राजनीतिक लाभ उठाने वालों द्वारा रोड जाम या जन आंदोलन किया जाता है।जिससे देश की जनता, रोगी बच्चे सभी को परेशान होती हैं वहीं कुछ अराजक तत्व सरकार की व जनता की संपत्ति का नुकसान भी करते हैं। इसके लिए मेरा सुझाव है कि हादसे में प्राण गंवाने वालों के परिवार को दी जाने वाली आर्थिक सहायता की राशि, यह ध्यान में रखकर कि वह जिंदा रहते हुए परिवार को कितना दे रहा था, के हिसाब से निश्चित कर दी जाय, उस धनराशि का भुगतान एल आई सी द्वारा कराया जाय। चाहे उसके लिए प्रीमियम सरकार को आधार कार्ड के आधार पर क्यों न भरना पड़े। इससे जनता में यह संदेश जाना चाहिए कि आंदोलन करने से कोई लाभ नहीं होगा। जो तय है उतना ही मिलेगा उस राशि को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता। इसका पालन भी बिना किसी भेदभाव के करना सुनिश्चित कराया जाय। जनता की इस सोच को बदलना होगा कि अगर जाम नहीं लगाया या तोड़फोड़ नहीं की तो कुछ नहीं मिलेगा। थोड़ा लिखा बहुत समझना। आप स्वयं समझदार हैं।
    आपका एक कार्यकर्ता
    देवेन्द्र सिंह परमार
    मो न. 9411400931

  • विचार मंथन – न्यायादेश

    अभी न्यायालय द्वारा आक्सीजन वितरण के विषय में दिए गए आदेशों से मुझे ऐसा लगा कि न्यायालय ने इतनी तीव्र गति से आई करुणा की लहर, सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास, देश के अन्य भागों के मरीजों की जान और दूसरे प्रदेशों की आवश्यकता पर विचार न करते हुए या अपना वर्चस्व महसूस कराने के लिए ये आदेश पारित किया है। न्यायालय ने कहा है कि आप आंख बंद कर सकते हैं, मगर हम नहीं। (शव्दों में परिवर्तन हो सकता है, भाव में नहीं इस पर ध्यान ना दें) महोदय खुले विचारों से अपने अंतर्मन से सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को देखकर, क्या आपको ऐसा लगता है कि सरकार आंख बंद किए है। जिसे आप मानहानि का नोटिस दे रहे हैं। जहां हमारे ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं होता है वहां सबसे बड़ा और कठोर अपना नियंत्रण होता है।
    महोदय, न्यायपालिका, का कार्य आम नागरिक को सस्ता, सुलभ व समय से ( देर से प्राप्त हुआ न्याय अन्याय के बराबर है) शीघ्र से शीघ्र दिलाने की व्यवस्था करना है। विचार करिये जिसके स्वयं के इतनी बुराईयां हों, वह दूसरों की अच्छाइयों को भी बुराई सिद्ध करें, यह कैसी अनोखी बात है। अधिक स्पष्ट नहीं कर सकता हूं। (मुझे भी नोटिस मिल जाएगा) आप स्वयं समझदार व सक्षम हैं। कृपा कर अपने घर की सफाई करने की कृपा करें।
    धन्यवाद

  •  10/05/2021 विचार मंथन- अपराधियों में न्याय का भय

    जीवन रक्षक दबाओ व अन्य वस्तुओं की जमा खोरी को देखकर आज मन कर रहा है कि मेरे पास कोई ऐसी शक्ति या पद होता जिससे मैं कुछ कर पाता। खैर लिख तो सकता ही हूँ। कभी न कभी तो उन तक मेरी बात पहुंचेगी, जो कुछ कर सकते हैं।)
    मेरा आज का मंतव्य उन सभी जमाखोरों, बलात्कारियो, काले – सफेद भ्रष्टाचारियों व देशद्रोहियों से है। ऐसे संगीन अपराधों के लिए अलग-अलग न्यायाधीश नियुक्त किए जाएं, उन्हें उनके आदेश पर काम करने वाली पुलिस, जिस पर अन्य कोई कार्य न हो, वह थाने से अलग हो, समुचित मात्रा में प्राप्त कराई जाए। जैसे रेलवे पुलिस उद्योग पुलिस इसी प्रकार न्यायालय पुलिस उसका अलग विभाग हो। जिसका पूर्ण संचालन न्याय विभाग द्वारा ही किया जाए। जांच करने वाली संस्थाएं सूचना मिलने पर या स्वयं संज्ञान लेने पर जांच कर जो रिपोर्ट तैयार करें उसकी सूचना सरकार, जनता व मीडिया को न लेकर, सीधे न्यायालय में केस दायर करें। और उसी दिन अदालत एक आदेश जारी करें कि अभियुक्त एक सप्ताह या एक माह (यह सीमा अपराध के प्रकार से तय की जाए।) के अंदर अपनी बेगुनाही के समस्त अभिलेखों के साथ अपने अधिवक्ता सहित अदालत में उपस्थित हो। अन्यथा यह मानते हुए कि आपको कुछ नहीं कहना है। रिपोर्ट के आधार पर एक पक्षीय निर्णय करते हुए आदेश पारित कर दिया जाएगा। जिससे अभियुक्त को कोई सेटिंग करने, देश से भागने, झूठे सबूत इकट्ठा करने, का मौका नहीं मिलेगा। अगर ऐसा कर दिखाया तो निश्चित मानिए कि अदालत का इतना आदर होगा कि अपराधों की संख्या घट जाएगी। निर्णय करने में न्यायाधीश, अभियुक्त, जांच एजेंसी, गवाह, एवं अधिवक्ता ही सम्मिलित हो। उनके अलावा किसी को भी कृत कार्रवाई का ज्ञान तब तक नहीं होना चाहिए जब तक फैसला न हो जाए। मीडिया वाले पहले से ही बड़ी ऊंची आवाज में चिल्लाने लगते हैं, इनकी जमानत हो गई, इनकी खारिज हो गई, यह राजनैतिक मामला है,इसे झूठा फंसाया गया है, सरकार कुछ नहीं कर रही है, यह जातिगत है, यह धार्मिक है। इनकी जवान क्यों नहीं हुई, उनकी जमात होने के लायक है, इनकी जमात नहीं होने के लायक है। ऐसी निराधार टिप्पणियो से जनता में आक्रोश या हम दर्दी का प्रसार होता हैं। फैसले में अगर अभियुक्त निर्दोष है तो जांच एजेंसी को झूठा केस दायर करने के लिए सजा दी जाए। यह संपूर्ण प्रक्रिया अधिक से अधिक तीन माह से 1 साल के अंदर पूरी की जाए। बुद्धि जीवी लोग इसमें टिप्पणियां भी कर सकते हैं, मगर मेरे भाई जब तक अपराधी के मन में भय पैदा नहीं होगा, तब तक अपराध पर रोक लगाना संभव नहीं है। पूर्वज कहते थे कि पीपल मत काटना, इसके नीचे गन्दगी न करना, भूत आ जाएगा। पीपल 24 घंटे ऑक्सीजन देता है, इसलिए उसे बचाना है तो भूत का भय दिखाया। अपराध होने पर तीन माह से एक साल के अन्दर सजा दे दो, तो मेरा मानना है कि अपराध 50 % कम हो जाएंगे। और यह तभी संभव होगा, जब हम आजादी के 75 साल पूरे होने पर, संविधान संशोधन का तोहफा देश को दे पाएंगे।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    9411400931

  • 19/05/2021 विचार मंथन – मुआवजा

    महोदय, चुनाव ड्यूटी के समय करोना काल में हुई मृत्यु पर तीस लाख का मुआब्जा देने का आश्वासन, यह निर्णय भावनात्मक व अनुचित है। आज वह जी का जंजाल हो गया है। इतनी बड़ी रकम होने के कारण बहुत से जाल साजों से निपटना पड़ेगा।सरकार भी इन मौतों की संख्या कम करने के लिए कई शर्तें लगाती है। इससे कुछ वास्तविक हकदार रह जाएंगे। उनके परिवार का वोट लाभ भी घट जाएगा। पूरे देश में इस प्रकार अगर 100 लोगों को मुआवजा दिया गया तो, यह धनराशि तीस करोड होगी।अगर यही धनराशि 1000 परिवारों को दी जाय, तो प्रति परिवार तीन लाख का मुआवजा होगा। जो उचित भी होगा, क्योंकि वह जो कमा रहा था, उतना तो परिवार को दे ही रहे हो। यह तो अतिरिक्त प्रोत्साहन लाभ है। और इससे 1000 परिवारों के वोट का भी सहयोग प्राप्त होगा।
    कभी-कभार कुछ ऐसे निर्णय लिए जाते हैं, जिन पर भावनाओं के एक अजीब डर का आवरण चढ़ा होता है। मगर ऐसे निर्णय से कुछ लोगों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। एक राजस्वरूप निर्णय करता को आदेश देने से पूर्व दिल के साथ दिमाग का भी प्रयोग करना चाहिए। इसी प्रकार के कुछ निर्णय लिख रहा हूं।
    इसी प्रकार अन्य घटनाओं के कारण होने वाली मृत्यु, बड़ी दुखदाई होती है। उसके प्रति सहानुभूति होनी चाहिए। मगर ऐसे समय अनुदान देने के निर्णय को दिल एवं दिमाग से लेना चाहिए। ऐसी मृत्यु पर किसी को 30 लाख, किसी को 5 लाख, किसी को कुछ नहीं। इस प्रकार दिए जाने वाला मुआवजा, न्याय संगत नहीं है। यह मामले बड़े संवेदनशील होते हैं। ऐसे मामलों में कुछ अराजक तत्व अपने लाभ के लिए रास्ते जाम करते हैं। आंदोलन करते हैं। ऐसे में सबके लिए एक नियम होना चाहिए। कि वह व्यक्ति जीवित रहते हुए कानूनी तौर पर अपने परिवार को प्रति माह क्या कमा कर दे रहा था। उसके आश्रितों को उतने धन की व्यवस्था पेंशन के रूप में या किसी भी रूप में करनी चाहिए। इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को तीन लाख की धनराशि समान रूप से, सबको, सहयोग राशि के रूप में प्रदान की जाय। यह राशि सबके लिए समान हो। क्यों कि प्रति माह तय की जाने वाली राशि व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं हैसियत के आधार पर है। किसी के रास्ता जाम करने, आंदोलन करने या राजनीतिक दबाव में किसी को 50 लाख किसी को 5 लाख किसी को कुछ नहीं, यह गलत है। इससे वे लोग जो वास्तविक सहायता के हकदार हैं, और असहाय हैं, उनके प्रति हमारी पूर्ण संवेदना होनी चाहिए। वे अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। इसका पाप तो आदेश कर्ता का होता है। अन्य लोग फ्री में ही अपना उल्लू सीधा कर जाते हैं। इस पर सरकार को विचार करने की आवश्यकता है। कुछ बातें कहीं नहीं जाती समझी जाती हैं। जनता की यह अवधारणा नहीं बननी चाहिए कि अगर हमने तोड़फोड़ नहीं की तो कुछ नहीं मिलेगा, जितनी ज्यादा तोड़फोड़ होगी उतना अधिक मिलेगा।
    इसी प्रकार बिना राशन कार्ड के खाद्यान्न देना अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में कुछ घरों से कितना मुफ्त का सामान बरामद हुआ था। वह भी किसी गरीब के हिस्से में ही था। यह हिसाब रखना भी आवश्यक है, कि कौन कितना ले जा रहा है। इस प्रकार के बहुत से मामले हैं जिनके विषय में सोचकर निर्णय लेने की आवश्यकता है। जो लोग सहायता से वंचित रह जाते हैं, वह भी तो आपके वोटर हैं। उनका हित सुरक्षित करना भी सरकार का ही दायित्व है।
    अतः सरकार को ऐसे निर्णय करते समय सहानुभूति के साथ दिमाग का भी प्रयोग करना चाहिए।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    9411400 931

  • 14/08/2023 विचार मंथन – एक राष्ट एक कानून

    माननीय मोदी जी,
    अब एक देश, एक कानून(जो धर्म, जाति, क्षेत्र बाद के आधार पर लागू न हो) बनाना अति आवश्यक है।
    एक देश एक स्वस्थ कानून के लिए सुझाव :-
    1- धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर बनी परम्पराओं के अनुसार शादी-विवाह, बोल-चाल, रहन-सहन, खान -पान, पूजा पाठ आदि के लिए व्यक्ति स्वतंत्र हो। इसमें कोई कानूनी हस्तक्षेप न हो।
    2 – जब कोई विवाद न्यायालय में आ जाय तो सबके लिए एक ही कानून होना चाहिए। इसके लिये हिन्दू विवाह ऐक्ट, मुस्लिम पर्सनल लौ, अनुसूचित जाति जनजाति कानून, जैसे धर्म,जाति या क्षेत्र के आधार पर बने कानूनों को मूलतः समाप्त किया जाय।
    3 – अनुपयोगी कानून, जिन कानूनौ में बिरोधाभाष (कानूनौ में छेद) है। जिसका लाभ उठा कर अपराधी सजा पाने से बच जाते हैं, उन कानूनों को मूलतः समाप्त किया जाय।
    4 – निश्चित समय में न्याय मिले, इसके लिए न्याधीस महोदय 10 से 4 तक जनता के हित में काम होना सुनिश्चित करें। अनावश्यक तारीखें न दी जाय। अभिलेख जमा करने की समय सीमा निश्चित हो। बहस में अधिक से अधिक समय दिया जाय। मुकद्दमौ की संख्या के अनुसार न्यायाधीशो व सम्बन्धित कर्मचारियो की नियुक्त सुनिश्चित कर लक्ष्य निर्धारित किये जाय ।
    5 – न्याय आम जनता के स्तर से महंगा होना, असम्वेधानिक धन का प्रयोग होना,न्याय का देर से मिलना, न्याय न मिलने के बराबर है, इस सब को समाप्त कर सबके लिए, एक ऐसा कानून बनाना होगा। जो भारतीय नागरिकौ के हितौ की रक्षा करता हो।
    6 – अलग से न्यायिक पुलिस की व्यवस्था हो, जो सिर्फ और सिर्फ न्यायाधिकारी के ही अधीन हो। तभी न्यायाधीश महोदय के आदेशों का त्वरित गति से पालन हो सकेगा। थाने की पुलिस के कारण होने वाली निरर्थक देरी से बचने के लिए यह अति आवश्यक है।
    आपका एक कार्यकर्ता
    देवेन्द्र सिंह परमार
    मो न. 9411400931

  • विचार मंथन – ध्यान देने योग्य बातें,

    माननीय मोदी जी,
    ध्यान यह भी रखना पड़ेगा कि कानून का दुरुपयोग न हो।
    हरिजन ऐक्ट का दुरुपयोग
    मथुरा के एस. सी. ऎक्ट के केश मे पढा कि सवा चार लाख रुपया सिर्फ केश दायर करने पर ही दायर करने वाले को , सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि दी जाती है ! चाहे केश झूठा ही क्यों न हो ! जब केश झूठा साबित होने पर भी दायर कर्ता को कोई दण्ड नहीं दिया जा सकता तो इतनी बढी रकम बिना किसी परिश्रम के और विना किसी रिस्क के, वो भी सरकारी खजाने से एक नम्वर में लेने में किसे ऎतराज होगा। इसका अर्थ है कि सवर्णो के विरुद्ध केश दायर कराने के लिये सरकार स्वयं बढावा दे रही है। और महनत कस करदाताऔ के पैसे का दुरपयोग कर रही है। तो बढा अफशोस हुआ।
    इस विषय में आज दिनांक 11/ 0 8 / 23 के दैनिक जागरण में, न्यायाधीश महोदय की स्वयं की टिप्पणी “पोक्सो एससी एसटी एक्ट से कर रहे वसूली” इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पाक्सो व एस सी – एस टी एक्ट के तहत कई मामलों में झूठी एफ आई आर दर्ज कराई जाती है। ऐसे केस आरोपित को समाज में बेइज्त करने और सरकार से मुआवजा लेने के लिए होते हैं।
    कोर्ट ने कहा है यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ महिलाएं इस कानून का उपयोग पैसे वसूलने के हथियार के रूप में कर रही हैं। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने दिया है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस संवेदनशील मामले में केस झूठा पाए जाने पर, जांच के बाद पीड़िता के खिलाफ धारा 344 की कार्रवाई करें।
    कितने दुख की बात है, कि एक समाज द्वारा दूसरे समाज के साथ इतना अन्याय एवं अत्याचार करने के लिए सरकार स्वयं प्रोत्साहन देती है। यह इस कानून में कमी नहीं तो क्या है।
    इसी प्रकार बलात्कार एवं घरेलू हिंसा के कानून की भी कहानी है जब दो व्यक्तियों में आपसी शारीरिक संबंध कोई वायदा करके किए जाते हैं और उसके बाद वायदा पूरा नहीं किया जाता है तो वह वायदा खिलाफी के अंतर्गत तो आता है मगर बलात्कार के अंतर्गत नहीं आता फिर भी प्रतिवादी को बलात्कारी की तरह प्रताड़ित किया जाता है इसी प्रकार कभी-कभी घरेलू हिंसा के मामले में भी अन्याय होता है और पति पक्ष को ही कानून द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
    कानून में इस प्रकार की बहुत सारी कमियां हैं, जिन को आधार बनाकर दबंग एवं धूर्त व्यक्ति भय, लालच का एवं भावनाओं का सहारा लेकर अपराध करने के बाद भी दोष मुक्त हो जाते हैं, या न्याय प्रक्रिया को धता बताकर लंबे समय तक निर्णय को बाधित करते हैं जो न्याय मैं मिली देरी के कारण न्याय न मिलने के बराबर है।
    संविधान में इस प्रकार की अनेकों कमियों के कारण ही अपराधी दोष मुक्त हो जाते हैं या दूसरे देशों में बस जाते हैं। या पूरे जीवन को आनंदपूर्वक जीकर वृद्धावस्था में सजा पाते जिसका कोई मूल्य नहीं होता हैं। इस प्रकार के दोष पूर्ण कानूनों का पुनर्गठन अत्यंत आवश्यक है।
    अंत में जन सामान्य के लिए जाति, धर्म, लिंग व क्षेत्र वाद से ऊपर उठकर, सुलभ, सस्ती, भ्रष्टाचार से मुक्त एवं शीघ्र न्याय मिलने की व्यवस्था हो, ऐसे कानून का पुनर्गठन किया जाए।
    आपका एक कार्यकर्ता
    देवेन्द्र सिंह परमार
    मो न. 9411400931

  • 2023 विचार मंथन- समस्या बोटर की।

    माननीय मोदी जी व योगी जी,
    सादर प्रणाम।
    महोदय,
    आप दोनों की संत परिवेशी दिनचर्या, देश के प्रति समर्पण की भावना, शारीरिक व मानसिक क्षमताओं को देखकर ही आप दोनों से व्यक्ति विशेष की अपेक्षाएं बढ़ गई है। सभी लोग राजनीतिक मजबूरी बस कहे या न कहें,मगर अंदर से वह भी मानते हैं कि आप दोनों व आपकी इस समय की राजनीतिक टीम जैसा व्यक्तित्व किसी दल के पास नहीं है। और आगे भी इसके अतिरिक्त कहीं दिखाई नहीं देता है, वैसे मुझे गर्व है कि आज हमारा नायक एक योग्य, अपना संपूर्ण समय देश के हित में लगाने वाला, पहली बार मिला है, इसलिए इस नायक से सब की अपेक्षाएं भी अधिक हैं,मेरा आपसे अनुरोध है कि देश के विकास एवं विदेश नीति पर जो कार्य आप कर रहे हैं, वह देश हित में अति आवश्यक है, मगर इन कार्यों को लंबे समय तक करने के लिए आपको इन पदों पर बने रहना भी आवश्यक है, इसके लिए इन पदों पर आपको बनाने वाले वोटरों की व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु, चलाई गई विभिन्न योजनाओं का उचित परिपालन करना भी आवश्यक है, क्योंकि आपकी योजना वोट में तभी बदलेगी जब वास्तव में जनता को लाभ होगा। मैंने इस विषय में जो जो पहले लिखा है उसका सार लिख रहा हूं। जब व्यक्ति के पास रोजगार होगा तब उसके पास पैसा होगा तब उसके पास कार होगी तब उसको सड़क की आवश्यकता होगी। अतः सड़क से पूर्व रोजगार की व्यवस्था, रोजगार से पूर्व स्वास्थ्य की व्यवस्था, स्वास्थ्य से पूर्व शिक्षा की व्यवस्था, इसी प्रकार आवश्यकताओं का क्रम निश्चित कर उन पर कार्य किया जाए। जनता के हितों के लिए देश की जनता को कुछ श्रेणियों में बांटना होगा। 1-कृषक, 2- सरकारी या प्राइवेट सेवक, 3- व्यवसाई , 4- राजनेता व कार्यकर्ता, 5- बेरोजगार, 6- बेसहारा व असहाय व्यक्ति।
    यह मेरा व्यक्तिगत विचार है, आपके पास बहुत योग्य बुद्धिजीवियों का सहयोग है, उनके सहयोग से इसमें सुधार किया जा सकता है।
    1-कृषक- किसानों की समस्याएं –
    अ- किसान की जर्जर आर्थिक स्थिति। ब- किसान का अनिश्चित भविष्य।
    अ-किसान की जर्जर आर्थिक स्थिति-इस पर विचार करने के लिए किसान की परिभाषा तय करनी होगी, इसके लिए इस वर्ग को दो श्रेणियो में बांटना चाहिए, एक – कृषक- जिसके पास दो हेक्टेयर कृषि भूमि, दो बैल ,दो भैंस हो,वही परिवार किसान की श्रेणी में हो। (इस पर कुछ लोग सोचेंगे यह बात देश को पीछे ले जाएगी, नहीं, मित्रों यह बात आगे आने वाले समय के लिए है संपूर्ण संसार अब जैविक अर्थात पुरानी पद्धति की ओर अग्रसर है।)
    दो- कृषि मजदूर- जो परिवार दो हेक्टेयर से कम कृषि भूमि रखते हैं उन्हें इस श्रेणी में रखा जाए।
    एक- कृषक- इस श्रेणी की जोत सीमा, जो तय की गई है, उसका आधार है, कि इससे कम जोत लाभकारी नहीं होती। उसमें उचित फसल चक्र नहीं अपनाया जा सकता, जिसकी वजह से हम लाभकारी फसलों को उचित स्थान नहीं दे पाएंगे और हम उचित लाभ से वंचित रह जाएंगे। भूमि की उर्वरा शक्ति का सही पूर्ण उपयोग नहीं कर पाएंगे। कमजोत पर लागत अधिक आएगी, क्योंकि खेती करने के लिए आवश्यक उपकरणों एवं संसाधनों की खरीद व रखरखाव पर औसतन अधिक खर्च आएगा जिससे लागत बढ़ेगी लाभ कम होगा। एक परिवार को औसत श्रेणी का जीवन यापन करने के लिए जितने धन की आवश्यकता होगी,उतना लाभ इसे कमजोत पर मिलना संभव नहीं है।
    अब हम इस बात पर विचार करते हैं कि एक किसान परिवार के लिए दो बैलों एवं दो भैंसों की आवश्यकता क्यों? किसान बैलों से खेती करेगा, उससे खेत की जुताई अच्छी तरह से होगी, जिससे खेत की उर्वरा शक्ति पड़ेगी, पैदावार बढ़ेगी, खर्च घटेगा, अमृत के समान गोबर की खाद खेती के लिए निशुल्क मिलेगी, इस प्रकार किसान की लागत कम होगी और लाभ बढ़ेंगे, साथ ही दो भैंस होने से मिलने वाले दूध में गोबर से आमदनी बड़ेगी गोबर गैस लगाकर कंपोस्ट खाद बनाकर बहुत सी आवश्यकताओं की पूर्ति निशुल्क की जा सकती है, जिससे अधिक लाभ लेकर जीवन सुधरा जा सकता है। यह बात है किसान के स्तर की अब सरकार के स्तर की बातों पर विचार करते हैं।
    1-पूर्ण आत्मविश्वास के साथ वास्तव में किसान की जर्जर हालत को सुधारने की सरकार की इच्छा शक्ति का होना अति आवश्यक है जिसकी अब अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि अब किसान की सहनशक्ति समाप्त हो चुकी है, वह जागृत हो रहा है। इस सरकार से अपेक्षाएं भी बहुत हैं। अतः अब सरकार को चाहिए की
    2- किसान की संपूर्ण जोत का डिजिटलाइजेशन करके ईमानदारी से किसानों का वर्गीकरण किया जाए।
    3- किसान द्वारा फसल पैदा करने में आने वाले वास्तविक खर्च एवं पैदावार का सही आकलन ईमानदारी से किया जाय। फसल पर आने वाली लागत के 150% के हिसाब से फसल का मूल्य निश्चित किया जाय।
    4- फसल की पूर्ण खरीद की व्यवस्था अपनी कड़ी निगरानी में प्राइवेट संस्थानों की मदद से करनी चाहिए, क्योंकि सरकार द्वारा करना संभव नहीं है?
    5-किसान सेवा केंद्र खोले जाय, जिन पर लाभ कर फसल चक्र, उन्नत खेती के लिए कृषकों को प्रशिक्षण दिया जाय, उन्नत बीज, खाद, उन्नत तकनीक, अनुदान पर उपलब्ध कराई जाए। फसल सुरक्षा के लिए दवाएं व उनकी तकनीक उपलब्ध कराई जाए। कृषियंन्त्र किराये पर उपलब्ध कराये जांय। यह केंद्र एम.एस.सी. कृषि या पी.एच.डी. कृषि की योग्यता रखने वालों के द्वारा ही संचालित हो।
    दो- कृषि श्रमिक- जो 2 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि रखते हैं, उनके लिए अनुबंध खेती की व्यवस्था हो। कृषकों के यहां कृषि में रोजगार प्राप्त हो, इसके अलावा इनको दुग्ध व्यवसाय, बकरी पालन, जैविक खाद निर्माण, फल संरक्षण पापड़, अचार जैसे अन्य व्यवसायों के लिए सरकार बिना ब्याज के ऋण की व्यवस्था करें, मगर कर्ज माफी बिल्कुल नहीं, क्योंकि कर्ज माफी से व्यक्ति में जालसाजी, बेईमानी, गैर जिम्मेदारी, अनुशासनहीनता, जैसे अवगुण पैदा होते हैं , जो व्यक्ति के लिए, समाज के लिए, प्रदेश के लिए व देश के लिये, (क्योंकि व्यक्ति से समाज, समाज से प्रदेश, प्रदेश से देश का निर्माण होता है) महान संकट का सूचक है। इसके अलावा कृषि श्रमिकों को घोषित मजबूरी मिले उचित शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, की व्यवस्था निःशुल्क सरकार द्वारा की जाए, क्योंकि मजबूरी में से इतनी बचत करना संभव नहीं है एवं रहने के लिए घर की व्यवस्था की जाए, चाहे घर छोटा सस्ता ही क्यों न हो इसके लिए आधार कार्ड आवश्यक हो।
    ब – किसान का अनिश्चित भविष्य- इसके लिए प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान से बचने के लिए बीमा कंपनियों के माध्यम से उचित लाभ दिलाने की व्यवस्था सरकार द्वारा ईमानदारी से की जाए।
    2- राजकीय सेवक – इनके लिए आवश्यक है जितना पैसा इन्हें दिया जा रहा है उतना कार्य कठोरता से लिया जाए। इनके लिए कुछ सुझाव बड़े-बड़े पदों की संख्या कम की जाए, छोटे पदों की संख्या बढ़ाई जाए, क्योंकि कार्य तो वर्ग 3 के कर्मचारी ही करते हैं, एक बड़े पद के खर्चे में तीन छोटे कर्मचारी रखे जा सकते हैं, जो तीन गुना कार्य करेंगे। अपने लाभ आराम के कारण ही अधिकारी ऐसा नहीं होने देते हैं। यह अति आवश्यक है, क्योंकि इस समय हमारा देश बेरोजगारी के दौर से लड़ रहा है। प्रत्येक कार्यालय से संबंधित जनता के कार्यों का समय निश्चित करने से काम नहीं चलेगा, उसका पालन भी किया जाए, उसका प्रचार प्रसार किया जाए, उसकी समीक्षा ईमानदार अधिकारियों द्वारा ईमानदारी से की जाए।
    प्रशिक्षित प्राइवेट सेवक- इनके लिए कुछ ऐसे कानून बनाए जाएं जिससे उनका भविष्य उज्जवल हो सके। संस्थान के मालिक उनके समय व पैसे का शोषण न कर सके, वैसे तो इसके लिए पहले से लेवर कोर्ट की व्यवस्था है मगर हमारी न्याय व्यवस्था की जो स्थिति है उससे नहीं लगता है कि देश में न्याय व्यवस्था भी है, व्यक्ति न्याय मांगने की जगह अपनी हानि को ही स्वीकार कर लेता है, क्योंकि न्याय इतना भ्रष्टाचारी, महंगा, पक्षपाती लंबे समय में मिलने वाला हो गया है कि न्याय का मिलना भी निरर्थक हो जाता है। लिखने का समय मिला तो इस पर भी लिखूंगा।
    3 – व्यवसायी- अ- उच्च व्यवसायी। ब- मध्यम व्यवसायी स- लघु व्यवसायी, द- शेष मजदूर ।
    अ- उच्च व्यवसाई- यह वर्ग तो वैसे ही सक्षम है इनको ऋण की सुविधा न दी जाए, बल्कि दिए गए ऋण की वसूली कठोरता से की जाए। यह तो पैसे वाले हैं इनको ऋण की आवश्यकता ही नहीं होती है। ऋण व अनुदान के कारण कुछ अनावश्यक कार्य भी किए जाते हैं। साथ ही एनजीओ की संस्थाओं पर कठोरता से नजर रखी जाए।
    ब- मध्यम व्यवसायी- इनमें छोटी इकाइयों के उत्पादन, दुकानदार, सेवाओं को बेचने वाले, वकील, डॉक्टर, छोटे बिल्डर, ठेकेदार, आदि वर्गों के लोग आते हैं। उनके लिए उचित श्रेणी की नेशनल व्यवस्था एवं कार्य करते समय आने वाली समस्याओं के समाधान की उचित व्यवस्था, कम ब्याज पर धन की व्यवस्था, अनुदान की व्यवस्था हो। मगर ऋण माफी कभी नहीं। सबसे महत्वपूर्ण उसके उत्पादन के विपणन की व्यवस्था (मार्केटिंग) की जाए, इसके संपूर्ण उत्पाद को लागत के 150 तथा मूल्य पर खरीदने की गारंटी दी जाए, आयकर में छूट दी जाए, बचत को प्रोत्साहित करने वाली स्कीम लाई जाए।
    स- लघु व्यवसायी- रेडी वाले, सप्ताहिक बाजार वाले, फुटपाथ पर बाजार लगाने वाले,रिक्शा टेंपो चलाने वाले, जूते की मरम्मत का काम करने वाले,नाई, बढई, धोबी कुमार का काम करने वाले, अन्य फुटकर काम करने वाले, राजमिस्त्री, बेलदार आज उनके लिए सरकार की जो रेहड़ी योजना चल रही है उससे जो धन व्यवस्था की जा रही है, यह ब्याज मुक्त है। इसे सुलभ बनाया जाए। इनके लिए उचित स्थान की व्यवस्था कराई जाए, ताकि इनको पुलिस या प्रशासन को छुपा टैक्स न देना पड़े, इनके बीमा की व्यवस्था, शिक्षा, चिकित्सा की निःशुल्क व्यवस्था कराई जाए। रहने के लिए निःशुल्क व्यवस्था कराई जाए, भले ही कम लागत के बांस के मकान बनाकर दिये जाय। लड़कियों की शादी निःशुल्क सामूहिक विवाह व्यवस्था के अन्तरगत करायी जाए।
    अन्य बुद्धिजीवियों से सुझाव लेकर अन्य जीवन रक्षक आवश्यकताओं की व्यवस्था की जाए। शहर का सबसे आर्थिक कमजोर वर्ग यही है इसको अधिक से अधिक सहायता की जाए। जो निःशुल्क मोबाइल लैपटॉप की रेवड़ियों में खर्च किए जाने वाले धन को यहां खर्च किया जाए। इस वर्ग को भी किसी मुक्त खाद्यान्न या किसी प्रकार के नगद पैसे का भुगतान या कर्ज माफी जैसी कोई सुविधा न दी जाए। कर्ज माफी तो किसी भी वर्ग के लिए उचित नहीं है।
    4 – शेष बेरोजगार – हम बड़े गर्व से सीना तानकर कहते हैं कि हमारा देश जवान है हमारे पास 35% युवा हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि हमारे पास जो संपत्ति है, उससे हम कितना लाभ कमा रहे हैं, उसका कितना सदुपयोग कर रहे हैं? क्या आप उस युवा ऊर्जा का उचित उपयोग कर पा रहे हैं? नहीं । क्या 30 साल के बाद आपका देश बूढ़ा नहीं हो जाएगा, तब क्या करेंगे, इसलिए अभी कुछ करने का समय है सारे बेरोजगारों की विकास खंड या तहसील बाइज काउंसलिंग हो, प्रथम काउंसलिंग में सभी सरकारी विभाग और प्राइवेट कंपनी शामिल हो जो अपने यहां के रिक्त पदों हेतु योग्य व्यक्तियों का चयन करें। सरकार की सोच में यह भारी कमी है, वह कर्मचारियों की सख्या कम करना चाहती है। प्रतिमाह जितने कर्मचारी सेवा निवृत्त होते हैं उतनी पोस्टिंग होनी चाहिए। सरकारी विभागों में उच्च पदाधिकारी के पद आवश्यकता से अधिक हैं, उनकी जगह तृतीय श्रेणी के तीन पद रखे जाय, जो उसी खर्चे में रखे जा सकते हैं, क्योंकि कार्य तो तृतीय श्रेणी के कर्मचारी ही करते हैं।
    प्रथम काउंसलिंग में अनुत्तीर्ण वेरोजगारो का एक टेस्ट लघु उद्योग विभाग के अधिकारियों द्वारा लिया जाए, इस स्तर पर खरे उतरने वाले बेरोजगारों के लिए सरकार द्वारा पीछे लिखी गई सुविधा देकर उन्हें मध्य व्यवसायी बनाया जाए।नया उद्यमी महनती तो होता है, मगर अनुभवहीन होता है अतः शुरू में उंगली पकड़ कर चलना सिखाना पड़ेगा फिर तो वह दौड़ने लगेंगि। इसके बाद वह उद्यमी बनकर रोजगार प्राप्त कर, दूसरों को भी रोजगार दे सकेगा। इसके बाद शेष बेरोजगारों के लिये प्रत्येक विकासखंड या तहसील स्तर पर एक बड़ी फैक्ट्री का निर्माण किया जाय,जिसकी श्रमिक क्षमता उपलव्ध श्रमिकों की संख्या के अनुसार 3000 से 5000 के बीच हो। (इसके लिए 1 या 2 साल की विधायक व सांसद निधि से धन की व्यवस्था की जा सकती है।) इन फैक्ट्रियों को सरकार चलाएं या किसी उद्योगपति को ग्रामीण क्षेत्र की सुविधा देकर चलवाया जाए। जिसमें यह सर्त र्हो कि श्रमिक उसी विकासखंड या तहसील का होगा। मैं समझता हूं कि इससे बेरोजगारी की समस्या का हल हो सकेगा।
    5 – राजनैतिक कार्यकर्ता – इनके लिये कुछ नैतिक कार्यो व विचारों की आवश्यकता है। इन्हें मिलने वाले मानदेयों को वेतन का नाम न दिया जाए, अन्यथा यह कर्मचारी संघिता के अंतर्गत आ जाएंगे, जो कि ये नहीं आते क्योंकि यह इलेक्टेड होते हैं, सिलेक्टेड नहीं। इनके मानदेय पर भी अंकुश लगाया जाए, क्योंकि यह समाजसेवी की श्रेणी में आते हैं, समाजसेवी अपनी सेवा का मूल्य नहीं लेता है। तभी वह समाज सेवी होता है। सेवा को बेचने वाले वकील डॉक्टर व अन्य व्यवसायी समाजसेवी नहीं होते। आप जनता की सेवा करने में जो खर्च करते हैं उसके लिए मानदेय शुरू हुआ था जो शुरू में कुछ सौ रू ही था। आम जनता के बीच से आए आम जनता के बीच में रहने वाले आम जनता के सेवकों को आने-जाने रहने खाने के लिए वही सुविधा जो आम जनता के लिए हैं निःशुल्क उपलब्ध कराई जाए। संसद व विधानसभा के लिए कठोर कानून बनाये जाए, व कठोरता से इनका पालन कराया जाए। जिससे आये दिन सांसद व विधानसभा न चलने देने वाले निंदनीय कार्य से होने वाली छति से बचा जा सके। इस विषय में बहुत कुछ विचारणीय है जो आप जानते हैं कुछ करना चाहे तो बड़ा कठिन है मगर आपसे आशा की जा सकती है, कुछ बीज तो वो दीजिए।
    6- बेसहारा व असहाय व्यक्ति- जिन वृद्धि एवं बच्चों का कोई सहारा नहीं है ऐसे समस्त समाज के समस्त असहयों के लिए भोजन की व्यवस्था हेतु बड़े-बड़े नियर शुल्क भोजनालय खोले जाएं साथ ही इन व्यक्तियों के रहने का प्रबंध भी सरकार द्वारा निशुल्क किया जाए। इसमें करदाताओं को भी किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। इस वर्ग को भी किसी मुक्त खाद्यान्न या किसी प्रकार के नगद पैसे न दिये जाय।
    यह तो मैं अपनी बुद्धि के अनुसार लिख रहा हूं इसके लिए अन्य बुद्धिजीवियों से भी विचार लिए जाएं, साथ ही माननीय मोदी जी मैं आपके ज्ञान अनुभव देशनिष्ठा आदि गुणों के भंडार से पूर्ण आश्वस्त हूं सिर्फ आपको ध्यान दिलाने की आवश्यकता समझता हूं। इसी के लिए समय दे रहा हूं।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    9411400931

  • 13/05/2021 विचार मंथन – शोक संदेश

    परम श्रद्धेय मेरे बालमित्र, ईश्वर कृपा प्राप्त श्री सुरेशाचार्य जी के ब्रह्मलीन होने का दुःखद समाचार मुझे प्राप्त हुआ। मुझे इससे बेहद हृदय विदीर्ण वेदना हुई। आचार्य जी से मेरी अंतिम भेंट मांगरु गाँव में गीता प्रवचन के समय हुई थी। उन्होंने मुझे आस्वस्त किया था कि तुम्हारी लिखी पुस्तक श्री कृष्ण चरित्र मानस की प्रूफरीडिंग एवं विमोचन मैं करूंगा। यह सपना अधूरा ही रह गया। बड़े दुख के साथ में ईश्वर से प्रार्थना करता हूं, कि परमात्मा इस शुद्ध आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें। व शोकाकुल परिवार को इस आकस्मिक आपदा को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
    ओम शांति, ओम शांति, ओम शांति,!
    स्वामी जी का अंतरंग
    देवेंद्र सिंह परमार
    9411400 931

  • 21/05/2021 विचार मंथन- मुस्लिम भाइयों के लिए।

    मुस्लिम भाइयों, अगर आपका धर्म यह मानता है, कि किसी अतिक्रमणित भूमि पर, या हराम की कमाई से बनाया गया भवन, मस्जिद नहीं हो सकता है। तो आपको मानना चाहिए कि जहां-जहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं, वहां पर मंदिर बनाए जांय। और आपको सरकार से अपनी इबादत के लिए, मस्जिद बनवाने के लिए, कहना चाहिए, क्योंकि अब तो सरकार सब की है। उसे देखना चाहिए कि किसी का हक कोई ना ले और सब को अपना हक मिले। अगर आप मानते हैं कि यह देश हमारे पूर्वजों का भी है तो आपका यह हक है। और अगर आप मानते हैं कि जिन आक्रांताओं ने बाहर से आकर आपके देश को लूटा है वह आपके पूर्वज हैं, तो यह हक भी आपका नहीं है। अगर यह देश आपका है तो आपको कहना चाहिए कि हमें किसी का हक नहीं लेना है, हमें हमारा हक सरकार दे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सबको सहमत करते हुए अपनी बात रखनी चाहिए।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 14/05/2020 विचार मंथन- भत्ते।

    सरकार ने कर्मचारियों के छह प्रकार के भत्तों को समाप्त कर दिया है, इसका स्वागत हम इस निवेदन के साथ करते हैं कि विधायक एवं सांसद महोदयो के 6 की जगह सिर्फ एक चुनाव क्षेत्र भत्ते को ही समाप्त कर दिया जाए। तत्कालीन सरकार ही यह कर सकती है। आशा है समानता के सिद्धांत वाली सरकार जनसाधारण की अपेक्षाओ पर भी गंभीरता से विचार करेगी। अगर आप इससे सहमत हैं तो आगे से अधिक सार्थक जगह पर पहुंचा कर सहयोग प्रदान करें।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 27 फरवरी 2020 विचार मंथन – शाहीन बाग

    शाहीन बाग में बैठे लोगों शायद आपका उद्देश्य सी ए ए को वापस करना नहीं कुछ और है। आपके कहने के अनुसार सरकार या विपक्ष सदन में वापसी का प्रस्ताव लाता भी है, जिन सांसदों ने इसके पक्ष में वोट किया था वह अब इसके विपक्ष में वोट करेंगे और प्रस्ताव गिर जायेगा। किसी कानून को वापस लेने या संशोधन करने की सलाह देने या रोग लगने का अधिकार न्यायालय को है आपको वही रास्ता अपनाना चाहिए इस प्रकार अपने ही भाइयों को कष्ट देना उचित नहीं है इस प्रकार अपने ही भाइयों को कष्ट देना उचित नहीं है। एक बात समझ में नहीं आ रही है के जो इस कानून से प्रभावित होंगे वह कोई प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं और जो प्रभावित नहीं हो रहे हैं वह प्रदर्शन कर रहे हैं वैसे जा साफ जाहिर होता है कि वह देश कुछ और है शायद आप के कंधे पर बंदूक रखकर कोई और फायर कर रहा है। कृपया समझने का प्रयास करो।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 12 सितंबर 2019, 09/10/2023 विचार मंथन – यातायात

    यातायात के नियमों की वजह से होने वाली मोंतौ को अगर कम करना चाहते हो तो कारगर उपाय करो। जैसे शराब पी कर, फोन चलाते हुए, ओवर स्पीड में, बिना हेलमेट या गलत तरीके से गाड़ी चलाने वाले पर उचित पैसे का जुर्माना या अन्य दंड लगाओ यह कुल मिलाकर अधिकतम ₹1000 ही होना चाहिए ₹1000 भी समान्य व्यक्ति के लिए कम नहीं है। मगर ध्यान रहे कि इसकी आड़ में भ्रष्टाचार व्याप्त न हो। प्रदूषण मुक्ति प्रमाण पत्र होना ही आवश्यक नहीं है, गाड़ी प्रदूषण मुक्त है या नहीं, यह देखना आवश्यक है। अगर गाड़ी प्रदूषण मुक्त नहीं है, तो जुर्माने के साथ गाड़ी को इसी वक्त प्रदूषण मुक्त करना भी आवश्यक है। गाड़ी को प्राप्त कर सीधा वर्कशॉप भेजा जाय। जुर्माना न किया जाय।
    मैंने 04/09/2019 को पोस्ट डाली थी, उस पर आज बहुत से प्रदेश सवाल उठा रहे हैं। मैं कहना चाहता हूं कि अगर किसी के पास आर सी नहीं है, तो आज सब कुछ ऑनलाइन है पता कर लो कि चोरी की रिपोर्ट किसी थाने में है या नहीं। अगर है तो जुर्माना क्यों करो, गाड़ी वाले को बंद करके कार्रवाई करो।अगर गाड़ी 15 साल से अधिक पुरानी है तो जुर्माना क्यों गाड़ी को ही जप्त कर लो।
    अगर बीमा नहीं है तो आपका क्या नुकसान है, गाड़ी चोरी होने पर, टूट-फूट होने पर उसी का नुकसान है। फिर जुर्माना क्यों? यह तो उसका अधिकार है कि वह बीमा कंपनी की किसी स्कीम के लाभ को समझता है या नहीं। यह काम तो कंपनी का है कि वह अपनी कम्पनी को चलाने के लिए लोगों को समझाएं, तब लोग बताएंगे कि हमें यह सुविधा चाहिए या नहीं। आपका जबरदस्ती करना यह संदेश देता है कि अधिकारियों का इसमें कोई अनैतिक लाभ है।
    हेलमेट न पहनना, क्या सरकार निश्चित कर सकती है कि हेलमेट लगाने से मौत नहीं होगी। हां यह मृत्यु रोकने में सहायक अवश्य है, मगर इतना नहीं जितना हल्ला किया जाता है।
    नाबालिक गाड़ी नहीं चलाएगा। क्या वालिगो से एक्सीडेंट नहीं होते? नावालिग कभी- कभी तो वालिगो से भी होशियार निकलते हैं। हां जो गलत तरीके से गाड़ी चलाएं वह वालिग हो या नावालिग उसे उचित दंड मिलना चाहिए।
    सरकार द्वारा बनाए गए कुछ नियमों के उल्लंघन का भय दिखाकर अधिकारी जुर्माने की राशि में सौदेबाजी करते हैं। पहले जब सरकार द्वारा ढाई सौ रुपए का जुर्माना था, तो ₹100 तक में सौदा हो जाता था। सरकार ने जब जुर्माना ₹5000 कर दिया, तो सौदा ढाई हजार से कम में नहीं होता। यह तो सीधा अधिकारी की जेब भरने का नियम है। जनता को जागरूक बनाने के लिए तो उचित आचरण सहित शिक्षा ही लाभदायक है। वैसे आप अपने हिसाब से ही करेंगे, मेरे हिसाब से तो लाइसेंस शब्द ही अंग्रेजियत की निशानी है। लाइसेंस किसी प्रकार का नहीं होना चाहिए। चाहे हथियार का हो, व्यापार का हो, या अन्य प्रकार का इसमें लाल फीतासाई का स्वरूप दिखाई देता है।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 21/07/ 2018 विचार मंथन – वायदा खिलाफी

    कल लोकसभा में होने वाली चर्चा से यह तो स्पष्ट हो ही गया कि जनता को बताने के लिए विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। अर्थात सरकार की कोई कमी नहीं है। साथ ही देश हित का कोई सुझाव भी विपक्ष के पास नहीं है। पूरी चर्चा में “वादा पूरा करो”-“वादा पूरा करो” यही शोर होता रहा, जैसे तीसरी कक्षा के बच्चे पहाड़ा रट रहे हों। जिससे जिम्मेदार पद पर आसीन सांसदों की योग्यता का वास्तविक रूप जनता के सामने आ गया, माननीय राहुल जी जरा सोचिए अब तक कांग्रेस पार्टी ने अपने बादे पूरे किए होते तो, इस सरकार को वादे करने ही नहीं पढ़ते। मैं मानता हूं कि कांग्रेस पार्टी ने भी विकास किया है, जहां सुई भी नहीं बनती थी वहां बहुत से कल कारखाने थे। अन्य क्षेत्रों में भी कार्य हुए थे। मगर कांग्रेस पार्टी के कार्य करने की पद्धति में भारी कमियां थी। जो देश का विकास हुआ वह मजबूरी में हुआ था। क्योंकि कांग्रेस पार्टी की कार्य पद्धति तो देश हित के सहारे अपना व पार्टी के कार्यकर्ताओं का विकास करने की थी। जिसे भ्रष्टाचार कहते हैं। इससे पूरा पैसा योजना तक न पहुंचने से योजनाएं समय से पूरी नहीं होती थी। अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक देश विकासशील नहीं विकसित देश होता। जो कार्य 5 साल में हो सकता था वह 50 में भी नहीं हुआ। विपक्ष देश के विकास में सहयोग नहीं कर सकता तो असहयोग भी न करें। जो कार्य वह नहीं कर सकते तो उसे दूसरों को करने दो।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 21/07/2018 विचार मंथन – एम आर पी

    माननीय प्रधानमंत्री जी,
    आपने देश हित में काफी कठोर निर्णय लिए हैं। (जातिवाद को छोड़कर ) उनकी प्रशंसा करना मुंह देखी बात नहीं है। वास्तविकता है जिसके परिणाम आने लगे हैं। मगर जिस प्रकार चौकीदार को हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है, उसी प्रकार आपको भी चौकन्ना रहने की आवश्यकता है। आपने देश में जी एस टी लाने का निर्णय लिया मगर टैक्स कम होने के स्थान पर और बढ़ गया। कुछ वस्तुओं को छोड़कर बाकी वस्तुओं का एम आर पी कम नहीं हुआ। मेरा सुझाव है, (शायद आप इस पर कार्य कर भी रहे हो मेरी जानकारी में नहीं है) उत्पादन लागत + उत्पादन लाभ + डीलर,रिटेलर कमीशन की समुचित दरें निर्धारित की जाए और उसी आधार पर एम आर पी लिखी जाय। पहले उत्पादक व डीलर टैक्स चोरी कर लेते थे, अब एम आर पी बढ़ाकर उपभोक्ता से वसूल कर, लाभ लेते हैं। एम आर पी की तरफ ध्यान देना भी नितांत आवश्यक है। इसके लिए ऐसी व्यवस्था हो के निरीक्षक भी ईमानदारी से कार्य करें। और समय-समय पर उनकी भी जांच होती रहे। ताकि उनके अंदर भी गलत करने पर दंड का भय बना रहे।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 25/05 / 2018 विचार मंथन – प्रधानमंत्री जी के लिए प्रिय का संबोधन

    भाइयों मैं हिंदुस्तान पेपर पढ़ता हूं, उसके प्रथम प्रष्ट पर ट्रैक्टर और डीजल वाले कौलम में श्री राहुल गांधी जी द्वारा माननीय प्रधानमंत्री जी के लिए लिखा है, “प्रिय प्रधान मंत्री” भाई राहुल जी क्या आप उम्र में मोदी जी से बड़े हैं? पद में उनसे बड़े हैं? क्या भूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं? क्या राजनीतिक स्तर में बड़े हैं? अगर किसी प्रश्न का भी उत्तर हां हो तो बताएं। अगर नहीं तो आप अपनी “प्रिय प्रधान मंत्री” लिखने की इस भूल को स्वीकार करें। इससे आप की योग्यता का परिचय होगा। जो राहुल जी के अनन्य भक्त हैं, उनके पास भी अगर कोई संस्कारी एवं स्टीक जवाब हो तो बताएं या राहुल जी को उचित सलाह दें।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 01 /07/2018 विचार मंथन – राजपूत

    किसी भाजपाई ने लिखा था कि राजपूत हमेशा के लिए भाजपूत हो जाय। अरे राजपूत को भाजपूत बनाने वालों राजपूत ने तो भाजपा को अपना लिया है। उसी का परिणाम है कि भाजपा की इतनी बढी जीत हुई। लेकिन भाजपा ने राजपूत को भाजपूत बनाने के लिए क्या किया? कुछ करके तो दिखाओ। राजपूत एहसान फरामोश नहीं होता है। राजपूत एहसान चुकाना बखूबी जानता है। सच में कहा जाए तो राजपूत की यही असली पहचान है। राजपूत की दोस्ती व दुश्मनी दोनों एक मिसाल है। जरा करके तो देखिए।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • विचार मंथन- नोटबंदी 2023

    पूर्व में 1000 एवं 500 के नोट बंद करके काले कारोबार की कमर तोड़ दी। अब 2000 का नोट बंद करने की सूचना सुनकर ही कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। मगर आम जनता के लिए तो लगभग 1 साल से ही ₹2000 का नोट बंद था कहीं-कहीं दिखाई देता था उसे भी लोग छुट्टा करने की परेशानी के कारण नहीं लेते हैं। जनता को एक साल से कोई परेशानी नहीं थी, और न आज है। अर्थात यह निर्णय आम जनता के हित में है। अब उन लोगों से पूछा जाय कि आपको परेशानी क्या है, उन्हें जो वास्तविक परेशानी है, उसे जनता के सामने कह नहीं सकते हैं। तो बनावटी परेशानियों का बखान करते हुये कहते हैं, कि देश के धन का नुकसान होगा। अरे इतना ही देश के धन का ख्याल है, तो कर चोरों की कर चोरी, बड़े उद्योगपतियों व व्यवसाययों की लाभ सीमा, राजनेताओं पर होने वाले अवैध खर्चों की बात करें। एक देश एक चुनाव, एक देश एक कानून, समान नागरिक संहिता की बात करें। और सरकार पर दबाव बनाएं, कि इन सभी मुद्दों पर सरकार काम करें। केवल धर्म की राजनीति पर ही चलकर देश का भला नहीं हो सकता, इसके साथ प्रति व्यक्ति आय, जिसमें किसान मजदूर से लेकर सभी वर्ग आते हैं का बढ़ना बेरोजगारी एवं महंगाई जैसे मुद्दे भी शामिल है। महंगाई बढ़ाकर, टैक्स व टैक्स की दर बढ़कर, विकास करना उचित परंपरा नहीं है। इसके लिए कारोबार बढ़ाकर टैक्स बढ़ाकर, एक देश एक चुनाव कराकर, बड़े-बड़े व्यवसाईयों व राजनेताओं अधिकारियों के खर्च को कम करके विकास कार्य को बढ़ाया जा सकता है। यही उचित है।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    941140 0931

  • 2023 विचार मंथन – सड़क किनारे डक्ट बनाना।

    मैंने बहुत पहले लिखा था, कि जिन सड़कों का नवनिर्माण या पुनर्निर्माण होता है, उस समय ही सड़क के किनारे पर जहां फुटपाथ होता है, वहां 4 फुट चौड़ा व सात फुट गहरा पक्का डक्ट, जो सड़क से एक फीट ऊंचा हो बनाया जाय, उसी में सड़क खोदकर डाली जाने वाली पाइप लाइनें (पानी की लाइन को छोड़कर) ले जायी जाय। उस डक्ट के ऊपर लेन्टर डालकर फुटपाथ बना दिया जाय। 100 – 100 मीटर पर डक्ट में घुसने के लिए मेनहौल एवं सड़क क्रॉस करने के लिए, पुलिया का निर्माण कर दिया जाय। इस डक्ट का प्रयोग करने वाली कंपनियों से नगर निगम या डक्ट बनाने वाली संस्था प्रति मीटर के हिसाब से शुल्क वसूल करें, जिससे कंपनी को भी बार-बार की खुदाई व सड़क निर्माण का खर्च नहीं करना पड़ेगा। जनता भी परेशान नहीं होगी, साथ ही कार्यदाई संस्था को भी धन लाभ होगा।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    941140 0931

  • 21/05/2021 विचार मंथन- मुस्लिम भाइयों के लिए।

    मुस्लिम भाइयों, अगर आपका धर्म यह मानता है, कि किसी अतिक्रमणित भूमि पर, या हराम की कमाई से बनाया गया भवन, मस्जिद नहीं हो सकता है। तो आपको मानना चाहिए कि जहां-जहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं, वहां पर मंदिर बनाए जांय। और आपको सरकार से अपनी इबादत के लिए, मस्जिद बनवाने के लिए, कहना चाहिए, क्योंकि अब तो सरकार सब की है। उसे देखना चाहिए कि किसी का हक कोई ना ले और सब को अपना हक मिले। अगर आप मानते हैं कि यह देश हमारे पूर्वजों का भी है तो आपका यह हक है। और अगर आप मानते हैं कि जिन आक्रांताओं ने बाहर से आकर आपके देश को लूटा है वह आपके पूर्वज हैं, तो यह हक भी आपका नहीं है। अगर यह देश आपका है तो आपको कहना चाहिए कि हमें किसी का हक नहीं लेना है, हमें हमारा हक सरकार दे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सबको सहमत करते हुए अपनी बात रखनी चाहिए।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 14/05/2020 विचार मंथन- भत्ते।

    सरकार ने कर्मचारियों के छह प्रकार के भत्तों को समाप्त कर दिया है, इसका स्वागत हम इस निवेदन के साथ करते हैं कि विधायक एवं सांसद महोदयो के 6 की जगह सिर्फ एक चुनाव क्षेत्र भत्ते को ही समाप्त कर दिया जाए। तत्कालीन सरकार ही यह कर सकती है। आशा है समानता के सिद्धांत वाली सरकार जनसाधारण की अपेक्षाओ पर भी गंभीरता से विचार करेगी। अगर आप इससे सहमत हैं तो आगे से अधिक सार्थक जगह पर पहुंचा कर सहयोग प्रदान करें।
    धन्यवाद
    देवेंद्र सिंह परमार
    94114 00931

  • 28/12/23 आंकड़ों का खेल

    आज के समय में पहले से अच्छा तो हो ही रहा है इसमें कोई दो राय नहीं है मगर इसमें भी कुछ-कुछ छूट रहा है, दिखावा अधिक एवं वास्तविकता कम नजर आती है। कोई भी क्षेत्र हो अंतिम व्यक्ति तक विकास का ध्वज नहीं पहुंच पा रहा है, इतने पुराने सिस्टम को सही करने में समय तो लगेगा ही मगर जितना समय लग रहा है उतना नहीं लगना चाहिए। अब कुछ आंकड़ों की एवं उनके पैमानों की वास्तविकता की बात करते हैं।
    नंबर एक – अभी कुछ समय पहले महंगाई के आंकड़े दिए गए थे बताया गया था कि पहले की अपेक्षा अब महंगाई कम हुई है। कुछ समय पहले रसोई का एक माह का सामान मैं लाता था तो लगभग 7000 रु का आता था और वही सामान अब10000 में आ रहा है, फिर यह कैसा गणित है कि आंकड़ों में महंगाई घट रही है और जेब पर महंगाई बढ़ रही है। इस प्रकार की आंकड़े बाजी से व्यक्ति का भला नहीं होना है।
    नंबर दो – जीडीपी, देश की इकोनॉमी, विदेशी मुद्रा भंडार जैसे विषयों पर भी खूब तारीफ बटोरी जाती है, मगर इसके साथ ही देश पर बढ़ते कर्ज व सकल घरेलू घाटे की भी चर्चा होनी चाहिए। उसके आंकड़े भी प्रस्तुत करने चाहिए वास्तव में यह दोनों काम होने चाहिए कर्ज लेकर घी पीना अच्छी बात नहीं है।
    नंबर तीन- विकास की भी खूब चर्चा हो रही है वह चाहे सड़क हो अंतरिक्ष हो उद्योग हो या अन्य योजनाएं हो की चर्चा बढ़ – चढ़ कर हो रही है, इसके साथ ही प्रति परिवार की आय एवं खर्च की भी चर्चा होनी चाहिए। एक सबसे छोटे परिवार (चार वयस्क दो बच्चे) का घर का बजट बनाया जाए उसके आधार पर प्रति व्यक्ति आय की गणना कर उसमें विकास किया जाए, गरीबी रेखा से कितने प्रतिशत लोग मध्यम श्रेणी में, कितने मध्यम श्रेणी से उच्च श्रेणी में आए, इसकी गणना को विकास का मापदंड रखा जाए तो उत्तम होगा।
    नंबर चार – टैक्स प्रणाली, जीएसटी आने पर कहा गया था कि सभी टैक्स हटाकर एक कर दिए जाएंगे जो पहले से कम होंगे मगर हुआ इसका उल्टा टैक्सों के प्रकार भी बढ़ गए और टैक्स भी बढ़ गए। मैं विस्तार में नहीं जाना चाहता मगर प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि टैक्स का भार असहनीय हो रहा है। विकास भले ही कम करिए मगर टैक्स के बोझ को कम करिए। देश की आय का मुख्य स्रोत टैक्स को न बनाकर, उद्योग, खनिज, अन्य संस्थान जैसे यातायात, माल ढुलाई (भू, जल, वायु मार्ग) आदि अनेकों साधनों को देश की आय का स्रोत बनाए। इसके अलावा अनावश्यक व असंवैधानिक खर्चो को जैसे अनावश्यक विकास योजनाएं, मुफ्त की रेवड़ियां, असीमित चुनाव खर्च राजनेताओं के खर्च, अत्यधिक प्रचार मीडिया खर्च आदि को कम करके देश की आय को बढ़ाया जा सकता है।
    अगर सरकार चाहे तो मेरे सुझाए बिंदुओं में ही गागर में सागर के अनुरूप बहुत कुछ है, आवश्यकता है तो ईमानदारी से देश हित को ध्यान में रखकर दृण संकल्प के साथ प्रयास करने की। देश के प्रत्येक नागरिक की मूल आवश्यकता है शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं न्याय यह निशुल्क प्राप्त होने चाहिए। देश के विकास को नापने का यही पैमाना होना चाहिए। साथ ही देश पर कर्ज, प्रति व्यक्ति आय, टैक्स का भार, सेना की शक्ति आदि भी देश के विकास के पैमाने होने चाहिए।
    अंत में निवेदन यही है कि जनता ने तो पूर्ण बहुमत देकर आपको इतना सशक्त बनाकर कि आप कुछ भी कर सकते हैं, इतना लंबा समय दे दिया है, अब गेंद आपके पाले में है, कि आपको आगे कैसे खेलना है।

    धन्यवाद                                                                                                                                                 देवेंद्र सिंहपरमार                                                                                                                                             94114 00931

         28/07/25 विचार मंथन:- धर्मांतरण

                    आजकल छांगुर बाबा के धर्मांतरण का प्रकरण काफी जोर शोर से चल रहा है। सरकार भी पूरा प्रयास कर रही है। मगर यह कार्य विधि अधूरी है, इसे पूर्ण करने के लिए कुछ बिंदुओं पर कार्य करना अत्यन्त आवश्यक है।
    धर्मांतरण के विषय में हमारा समाज एक भूल को अनदेखा कर रहा है, हमारा सनातन समाज अपने बच्चों को कठोरता से सनातन की संस्कृति से नहीं जोड़ पा रहा है। आज के समय में संतान मोह इस कदर बढ़ गया है कि हम बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। पहले संतान अपने माता-पिता से डरती थी, उनके निर्णय का सम्मान करती थी। माता-पिता के ज्ञान और उनके जीवन के अनुभवों के आधार पर माता-पिता के निर्णय को अच्छा समझती थी। और यह सत्य भी है कि बच्चा उम्र से नहीं जीवन के अनुभवों से सीखना है।15 से 30 वर्ष की उम्र के पडाव में बच्चों पर विलासिता, कामुकता, स्वतंत्रता जैसी भावना का प्रभाव अधिक होता है। गंभीरता, दूर दृष्ठिता एवं वास्तविकता जैसे गुणों का अभाव रहता है। वास्तव में इस उम्र में ही माता-पिता की व उनके नियंत्रण की अधिक आवश्यकता होती है। इस समय बच्चों को नियंत्रण हीन स्वतंत्रता देना हानिकारक होता है। सनातन इसका समर्थन कभी नहीं करता है। आज संतान के मोह के कारण संतान से माता-पिता डरते हैं। यह हमारी सनातन संस्कृति नहीं है। इस कार्य में स्वार्थ बस सरकार, मीडिया व पश्चिमी सभ्यता, सनातन संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से सहयोग करती है। इसके लिए सिनेमा, टीवी, मोबाइल, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म अत्यंत हानिकारक हैं। इन पर भी नियंत्रण होना चाहिए। अपने बच्चों को भी नियंत्रित छूट देनी चाहिए।
    मैं बच्चों को दी जाने वाली स्वतंत्रता का विरोधी नहीं हूँ, मगर स्वतंत्रता देेेने से पूर्व बच्चे का बौद्धिक व शारीरिक विकास करने के बाद स्वतंत्रता देने का पक्षधर हू। विकास में बच्चे को सनातन संस्कृत के अनुसार क्या अच्छा है, क्या बुरा है, इसका पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। बॉयफ्रेंड बनाना, पार्टी में खाद्य अखाद्य का खाना, देर रात तक घर से बाहर रहना, छोटे कपड़े पहनना, इसकी सनातन संस्कृत में कोई जगह नहीं है। ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनको आज का समाज सही ठहरता है, मगर वह अत्यंत हानिकारक है। शारीरिक विकास में बच्चों की इच्छा के विरुद्ध अगर कोई जबरदस्ती करता है तो शारीरिक बल जिसमें बच्चों में आत्मविश्वास का होना, जूडो कराटे जैसी रक्षात्मक कलाओं में प्रशिक्षित होना, आदि गुणों का समावेश होना है। ऐसे सनातन संस्कृति धारी बच्चे या बच्ची का धर्मांतान्तरण कराना आसान नहीं होगा। लोग कहते हैं कि गरीबी के कारण धर्मांतरण होता है। यह सत्य नहीं है। धर्मांतरण का मुख्य कारण हमारे बच्चों का संस्कारी न होना है। धर्मांतरण से पूर्व सर्वप्रथम परिचय फेसबुक, इंस्टाग्राम, युटुब जैसे माध्यमों से होते हैं। क्या देर रात तक बच्चों को माता-पिता से छुपा कर वार्ता करने की स्वीकृति देना उचित है। यह हमारे समाज की नहीं तो और किसकी कमियां हैं। छलने वाले तो अपने स्वार्थ में छलने के लिए घूम ही रहे हैं। प्रारंभ में हमारे बच्चे ही बनावटी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ऐसे लोगों को नजदीक आने का मौका देते हैं। जब ऐसे लोग हमारे बच्चों को पश्चिमी सभ्यता के सपने दिखाते हैं तो हमारे अपरिपक्व मस्तिष्क वाले बच्चे उनके छलावे में आ जाते हैं, उसके बाद वह कुछ ऐसी स्थितियां बना देते हैं कि हमारे बच्चे विवस होकर उनकी बात मानते हैं। यह तो हमें सोचना है कि हमें छलना है या नहीं।
    देश के लिए खतरनाक,धर्मांतरण,आतंकवाद,अलगाव बाद के विरुद्ध कार्यवाही शुुरू होते तो दिखती है मगर परिणाम के विषय में चर्चा नहीं होती। अगर इन समस्याओं से राजनीतिक लाभ न लेकर सरकार देश को वास्तव में बचाना चाहती है तो, जितने व्यक्ति इन कार्यवाहियों में संलिप्त पाए जाएं वह चाहे किसी भी राजनीतिक दल के हो अधिकारी हो, नागरिक हो या विदेशी हो, किसी भी जाति, धर्म, क्षेत्र, के हो उनकी अपराध में संलिप्तता सिद्ध होने के बाद कठोरतम दंड निर्धारित कर उसका पालन कम से कम समय में (1 साल) के अंतर्गत कराया जाए। इस परिणाम की हलचल मीडिया में इस प्रकार हो जैसी के कार्यवाही शुरू होने पर की जाती है। इसमें मीडिया को भी नियंत्रित आचरण के लिए बाध्य किया जाए। कभी-कभी तो मीडिया ही अदालत बन जाती है। अपराध सिद्ध होने तक वादी प्रतिवादी व उनके अधिवक्ताओं को ही, कोर्ट के समक्ष बोलने की, अपनी बात व तथ्यों को रखने की स्वतंत्रता हो, ताकि किसी के साथ अन्याय न हो। सरकार या जनता को एवं मीडिया को कार्यवाही से कठोरता से अलग रखा जाए। परिणाम से पूर्व किसी भी संस्था या व्यक्ति को समीक्षा करने का या उसके विषय में चर्चा करने का अधिकार नहीं हो, ऐसा करना न्यायालय की अवमानना का अपराध माना जाए। इसी के कारण अपराधी छल, बल व धन का उपयोग करके न्यायालय को भ्रमित न करते हैं। राजनैतिक पार्टियां अपने वोट बैंक के लिए, ऐसे अपराधों से लाभ न ले सके।
    जब छोटी अदालत के निर्णय को बढ़ी अदालत में ले जाय तो छोटी अदालत भी एक वादी पार्टी हो। अगर छोटी अदालत के निर्णय से बड़ी आधार संतुष्ट है, कि जो न्याय प्रक्रिया अपनाई गई है वह पूर्णतया सही है, तो अभिलेखों के आधार पर इस निर्णय को अति शीघ्र क्रियान्वित किया जाए। अगर उच्च न्यायालय संतुष्ट नहीं है तो न्याय करने में जो त्रुटि रही उसके कारण पर विचार हो। अज्ञानता, लापर वाही, किसी प्रकार का दबाव या व्यक्तिगत लाभ जो भी कारण साबित हो के आधार पर संबंधित व्यक्ति पर कठोर कार्रवाई हो। और उसकी चर्चा भी मीडिया में अधिक से अधिक सुर्खियों में हो।
    विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका व मीडिया की जो आचार संहिता मौजूदा संविधान में है, उसकी समीक्षा हो तुर्टियों का संशोधन हो। इस संशोधन में राजनेताओं की सहमति से महत्वपूर्ण जनता की सहमति हो, क्योंकि यह लोकतंत्र है इसमें जनता का महत्व सर्वोपरि होना चाहिए। क्योंकि राजनेता अपने स्वार्थ बस निष्पक्षता से विचार नहीं रखते हैं।                                                                                                    धन्यवाद                                                                                                                                                 देवेंद्र सिंहपरमार                                                                                                                                             94114 00931